नई दिल्ली । दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि हमारे देश में वैवाहिक बलात्कार की कोई अवधारणा नहीं है क्योंकि भारतीय कानून इसे अपराध के रूप में मान्यता नहीं देता है। कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हैं और यह अनिवार्य करते हैं कि एक पुरुष द्वारा 15 वर्ष से ऊपर अपनी पत्नी के साथ संभोग करना बलात्कार नहीं है। मामले में अगली सुनवाई सात जनवरी को होगी। एक मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हरि शंकर ने कहा, "भारतीय संदर्भ में आज की तारीख में आपको लगता है कि वैवाहिक बलात्कार शब्द एक विरोधाभास है क्योंकि भारतीय कानून वैवाहिक बलात्कार नामक किसी भी चीज को मान्यता नहीं देता है। आइए तथ्यों का सामना करें, क्योंकि भारतीय संदर्भ में 375 आईपीसी की व्याख्या कानून की किताब पर है, देश में वैवाहिक बलात्कार की कोई अवधारणा नहीं है। इसलिए हम अनिवार्य रूप से यह कह रहे हैं कि दृष्टिकोण को लक्षित रखें और अकादमिक चर्चा में न पड़ें। न्यायमूर्ति राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली पीठ ने वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ताओं को इस पहलू पर अकादमिक चर्चा में जाने के बजाय कानूनी मुद्दों और कानून के प्रावधानों पर चर्चा करने का सुझाव दिया। वहीं, न्यायमूर्ति हरि शंकर, जो पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल के साथ एक साल तक मामले की सुनवाई करने वाली पिछली पीठ का भी हिस्सा थे, ने कहा कि याचिकाओं को एक साल के लिए सुना गया था और अनिर्णायक रहा। अदालत एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन्स एसोसिएशन और दो व्यक्तियों की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने भारतीय कानून में इस अपवाद को खत्म करने की मांग की है, जिसमें 15 साल से अधिक उम्र की नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार के रूप में नहीं मानता है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से इस पहलू पर गौर करने के लिए कहते हुए कहा एक शासी कारक यह होगा कि बलात्कार के मापदंडों के भीतर शादी में अनिच्छा से यौन संबंध बनाने की एक घटना पति को 10 साल के लिए जेल में डाल सकती है। इस मामले को अदालत से दैनिक आधार पर सुनवाई के लिए लेने का भी आग्रह किया गया है। जिस पर अदालत ने कहा कि वह शीतकालीन अवकाश के बाद ऐसा कर सकती है। मामले की सुनवाई सात जनवरी को होगी।
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