हबीबगंज स्टेशन का नाम बदला , राजा भोज के पिता सिंधुराज के नाम से जायेगा जाना
भोपाल - हबीबगंज रेलवे स्टेशन तथा हबीबगंज बाज़ार का प्रस्तावित नाम राजा भोज के पिता "महाराजा सिंधुराज रेलवे स्टेशन" तथा "महाराजा सिंधुराज नगर" हो गया है। हबीबगंज रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह भोपाल शहर में स्थित है और भोपाल शहर का दूसरा रेलवे स्टेशन है। इसे भारत का पहला आईएसओ प्रमाणित निजी रेलवे स्टेशन का दर्जा प्राप्त है
कौन थे राजा भोज और महाराजा सिंधुराज –
'परमार' अथवा 'पवार वंश'
राजा भोज चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे। पन्द्रह वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्य अभिषेक मालवा के राजसिंहासन परकर दिया गया था । प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डॉ. रेवा प्रसाद द्विवेदी ने प्राचीन संस्कृत साहित्य पर शोध के दौरान मलयाली भाषा में भोज की रचनाओं की खोज करने के बाद यह माना है कि राजा भोज का शासन सुदूर केरल के समुद्र तट तक था।
इतिहासकारों अनुसार राजा भोज परमार मालवा के 'परमार' अथवा 'पवार वंश' के नौवें यशस्वी राजा थे। उन्होंने 1018 ईस्वी से 1060 ईस्वी तक शासन किया। कुछ विद्वानों अनुसार परमार वंश ने मालवा पर सन् 1000 से 1285 तक राज किया। भोजराज इसी महाप्रतापी वंश की पांचवीं पीढ़ी में थे।कुछ विद्वान मानते हैं कि महान राजा भोज (भोजदेव) का शासनकाल 1010 से 1053 तक रहा। राजा भोज ने अपने काल में कई मंदिर बनवाए। राजा भोज के नाम पर भोपाल के निकट भोजपुर बसा है। धार की भोजशाला का निर्माण भी उन्होंने कराया था। कहते हैं कि उन्होंने ही मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाया था जिसे पहले 'भोजपाल' कहा जाता था। इनके ही नाम पर भोज नाम से उपाधी देने का भी प्रचलन शुरू हुआ जो इनके ही जैसे महान कार्य करने वाले राजाओं की दी जाती थी।
मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक प्रदेश में हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं, चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं।
महाराजा भोज इतिहास प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे व सिंधुराज के पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम लीलावती था।मुंजराज के बाद उनके भाई सिन्धुराज गद्धी पर बैठे | इस शासक ने हूँण ,कौशल ,बागड़ लाट और नागों के राज्य बैरगढ म.प्र. को विजय किया | इस नविन साहस के कारन इसे नवसाहसांक कहा गया | नागों ने सिन्धुराज से मैत्री बढ़ाने के लिए अपनी पुत्री शशिप्रभा का विवाह सिन्धुराज से कर दिया | सिन्धुराज वि.सं.1066 से कुछ पूर्व गुजरात के सोलंकी चामुंडाराज के साथ हुयी लड़ाई में वीर गति को प्राप्त हुए |
Source- https://bit.ly/3y0KGHL
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