ओशो प्रेम नमन 💟
यह एक बहुत अनूठी दुनिया है। यहां बादशाहत से भरे हुए लोग भिखमंगे बने हुए घूम रहे हैं। जिन्हें सम्राट होना था, वे हाथ में भिखारी के पात्र लिए हुए घूम रहे हैं। थोड़ा सा प्रयास लेकिन तुम्हारे समाज और तुम्हारे संस्कार तुम्हें डराते हैं। वे तुमसे कहते हैं, स्वयं को जानना, यह जन्मों में होता है, यह कभी-कभी होता है, यह किसी अवतारी पुरुष के जीवन में होता है, यह किसी तीर्थंकर के जीवन में होता है। यह कोई मसीहा, कोई पैगम्बर, कोई ईश्वर का पुत्र तुम तो एक साधारण आदमी हो। तुम इस झंझट में मत पड़ जाना, तुम इस मुश्किल को हाथ में मत ले लेना। यह तुम्हारे बस की बात नहीं है।
मैं तुमसे कहता हूं कि यह तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है, और इसके लिए तीर्थंकर होना जरूरी नहीं है। हां, यह घटना घट जाये तो तुम मसीहा हो जाओगे। मसीहा होना पहली जरूरत नहीं है, अन्तिम परिणाम है ।
बस तुमसे एक घंटा मांगता हूं। और चौबीस घंटे में तुम एक घंटा न दे सको, इतने दीन तो नहीं। इतना दीन तो कोई भी नहीं। और मैं नहीं कहता कि मंदिर में जाओ और मैं नहीं कहता कि मस्जिद कि फिक्र करो। इन्होंने यह ख्याल पैदा किया कि भगवान तुम्हारे घर में नहीं है। मैं तुमसे कहता हूं, तुम जहां हो, वहां भगवान है। इसलिए तुम जहां बैठ गये, वहीं तीर्थ हो गया। बस जरा मौन बैठ जाओ, शांत बैठ जाओ। थोड़ी देर - सबेर लगे तो घबराना मत। और लोग इतने अधैर्य से भरे हैं कि एक साधारण - सी शिक्षा, जो उन्हें ज्यादा से ज्यादा किसी आफिस में क्लर्क बनाकर छोड़ेगी, उसके लिए जिंदगी का एक-तिहाई हिस्सा खर्च करने को राजी हैं, और पच्चीस वर्ष युनिवर्सिटी, स्कूल, कालेजों के चक्कर काटने के बाद फिर दफ्तरों के चक्कर काटेंगे, और तो भी नहीं सोचते कि मैं तुमसे केवल एक ही घंटा मांग रहा हूं। और उस घंटे भर की अनुभूति तुम्हें वहां पहुंचा देगी, उस अमृत अनुभव में, उस शाश्वत में, जिसके पाने के लिए यह जगत एक पाठशाला है।
- ओशो🦋
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