डॉ. राघवेंद्रसिंह तोमर परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा
सत्य केवल एक परमात्मा के सिवा और कोई नहीं : पं. राजकिशोरजी व्यास
ज्ञान, वैराग्य, सुख, शान्ति और समृद्धि-वैभव, सबकुछ सत्संग से ही प्राप्त होता है : पं. देवेन्द्रजी शास्त्री
मंदसौर। रामटेकरी पोरवाल छात्रावास में श्रीमद् भागवत कथा में पंडित राजकिशोरजी व्यास (सिहोनिया, मुरैना) ने कहा कि पूर्व जन्म के संस्कार जागृत होने पर ही सत्संग की प्राप्ति होती है। जब तक मन में श्रद्धा भाव नहीं होगा तब तक श्रीमद भागवत कथा रसपान नहीं होगा। भक्ति ज्ञान वैराग्य तीनों जीवन के सुख के साधन-बिना सत्संग के मिलना दुर्लभ है। ‘‘सत्यम परम् धीमही’’ सत्य केवल एक परमात्मा के सिवा और कोई नहीं। भगवत नारायण कब कहां मिल जाये कहा नहीं जा सकता। हमें स्मरण बना रहना चाहिये।
श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन पं. राजकिशोर व्यास ने कहा कथा हमेशा व्यासपीठ के सामने आगे बैठकर सुनना चाहिए। पीछे बैठकर नहीं क्योंकि कथा में भगवान की दृष्टि सर्वप्रथम जो आगे बैठकर सुनते है उन्हीं पर पड़ती है। शुक्रदेव 12 वर्ष तक माँ के गर्भ में रहे। बाहर संसार की माया से ग्रसित नहीं हो इसलिये बाहर नहीं आ रहे थे, परन्तु बार-बार व्यासजी के कहने से मॉ के गर्भ से बाहर तो आ गये परन्तु बाहर आते है जंगल की ओर चल दिये। व्यासजी को जब 18 पुराण 6 शास्त्र पंचम वेद महाभारत की रचना करने के बाद भी शान्ति नहीं मिली तब नारदजी ने श्रीमद् भागवत की रचना करने को कहा। नारदजी यद्यपी दासी पुत्र थे परन्तु भगवान की भक्ति से उन्हे ब्रह्माजी के पुत्र बनने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। व्यासजी के कहने पर शुक्रदेवजी जब राजा से ज्ञान प्राप्त करने गये तो राजा जनक ने
नारदजी को दरवाजे पर ही खड़े रहने को कह दिया। शुक्रदेवजी 4 दिन दरवाजे पर खड़े रहे परन्तु मन में जरा भी दुःख नहीं हुआ क्योंकि शुक्रदेवजी निरभिमानी थे, काम-क्रोध-मद को जीत लिया था। व्यासजी ने तब भागवत संहिता शुक्रदेवजी को प्रदान की।कथा के प्रारंभ में पौथी पूजन भागवताचार्य पं. देवेन्द्र शास्त्री ने किया। पौथी पूजन के बाद आर्शीवचन देते हुए उन्होंने कहा कि जब भी जहां भी समय दिखे संतों के सानिध्य और सत्संग को कंजूस की भांति दौड़कर अन्तःकरण में भर लेना चाहिए क्योंकि बिना सत्संग, विवेक नहीं होता और बिना विवेक नहीं होता और बिना विवेक भक्ति नहीं मिलती। तभी ज्ञान वैराग्य यहां तक की सुख शान्ति की समृद्धि-वैभव, सबकुछ सत्संग से ही प्राप्त होता है। हमे हमारे जीवन के उच्च से उच्चतम लक्ष्य को यदि प्राप्त करना है तो वह बिना संतों के सानिध्य और सत्संग के प्राप्त नहीं हो सकता और इसे प्राप्त करने और ईश्वर तक पहंुचने का सबसे सुगम साधन है भागवत कथा। सत्संग कथा अंतःकरण में उतारना चाहिए, एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देना कथा श्रवण का लाभ नहीं है।
पौथी पूजन तोमर परिवार की वरिष्ठ श्रीमती शांतिदेवी, पुत्र डॉ. राघवेंद्रसिंह व िजतेंद्रसिंह तोमर के साथ ठा. सूरतरामसिंह तोमर, ठा. रामवीरसिंह तोमर, ठा.शिवरामसिंह तोमर, राजेशसिंह ठाकरे, ठा. गजेंद्रसिंह तोमर, ठा. भानुप्रतापसिंह चंद्रावत, ठा. कोमलसिंह तोमर सहित ठा. बालूसिंह सिसौदिया, बांशीलाल टांक, पुखराज दशौरा, जितेंद्रिसिंह चंद्रवात, राजेंद्र छाजेड़, अवधेशकुमार दीक्षित सहित मातृशक्ति के रूप में बबीतासिंह तोमर, पूजा तोमर, आरती चौहान, रजनी धाकरे, डोली तोमर व बड़ी संख्या में आमंत्रितगण मौजूद रहे। संचालन सत्येन्द्रसिंह सोम ने किया।
प्रवक्ता बंशीलाल टांक ने बताया कि कथा का आयोजन स्व. लालसिंह तोमर की इच्छा से तोमर परिवार यह आयोजन कर रहा है। कथा प्रतिदिन दोपहर 2.30 बजे से 6 बजे तक रामटेकरी स्थित पोरवाल छात्रावास में होगी। शाम को 6 बजे पौथी की आरती में उज्जैन दुग्ध संघ संचालक व भाजपा नेता केकेसिंह कालूखेड़ा, मुकेश काला, कीर्तिशरण सिंह, विजय गुर्जर, पुखराज दशौरा सहित आमंत्रितगण उपस्थित रहे।

.jpeg)

Please do not enter any spam link in the comment box.