बिना क्षतिपूर्ति योजना के मेट्रो रेल के डिपो के लिए बलि चढाए जाएंगे 947 पेड़

भोपाल । वृक्षों का परिरक्षण अधिनियम 2001 के अंतर्गत नगरीय क्षेत्रों में पेड़ को काटने से पहले इनके क्षतिपूर्ति वाले पौधे लगाने के लिए स्थान तय करना होगा। इसके बाद ही पेड़ काटने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन निगम अधिकारियों ने भी नियमों के खिलाफ जाकर पेड़ काटने की अनुमति जारी कर दी। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार इन पेड़ों के कटने से बायोडायवर्सिटी को भी खतरा है। स्टड फार्म का क्षेत्र बहुत पुराना है। इसलिए इन पेड़ों पर कई प्रजाति के कीट-पतंगे व पक्षियों का बसेरा था। इन पेड़ों के कटने से इनके आश्रय पर भी संकट पैदा हो गया है। कोलकाता में 250 पेड़ काटने के एक मामले में इससे होने वाले नुकसान का आंकलन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अलग से एक एक्सपर्ट कमेटी का पैनल बनाया था। इस पैनल ने फरवरी 2021 में सुप्रीमकोर्ट को जो रिपोर्ट सौंपी उसके अनुसार एक हेरिटेज पेड़ या बड़ा पेड़ प्रतिवर्ष एक लाख 74 हजार रुपये के बराबर आक्सीजन देता है। यदि ये पेड़ सौ साल तक रहता है तो एक करोड़ रुपये से अधिक राशि के बराबर प्राणवायु लोगों को मिलती है। ऐसे में वैज्ञानिक तर्को और सुप्रीम कोर्ट के आधार पर 947 पेड़ों से सौ साल में करीब 974 करोड़ रुपये से अधिक की आक्सीजन वायुमंडल को मिलती है। यदि एक पेड़ 100 फीट लंबा और 18 इंच मोटा है तो यह छह हजार पाउंड आक्सीजन प्रतिदिन देता है। इसके अलावा वातावरण में उपस्थति हानिकारक कार्बन डाई आक्साइड को भी शोषण करता है। यदि औसत निकाला जाए तो एक बड़ा पेड़ चार लोगों के जीने के लिए पर्याप्त आक्सीजन देता है। इस प्रकार यदि 947 पेड़ काटे जाते हैं तो अनुमान के मुताबिक चार हजार लोगों के जीवन भर लेने लायक आक्सीजन खत्म हो जाती है। इस बारे में नगर निगम अपर आयुक्त पवन सिंह का कहना है कि अभी इस मामले की विस्तृत जानकारी नहीं है। अधिकारियों से बात करने के बाद ही इसके बारे में बता पाएंगे। यदि पेड़ काटे जा रहे हैं, तो नियमों के तहत ही काटे जा रहे होंगे। इस बारे में अनुसंधान एवं विस्तार वन विभाग के प्रभारी एचएस मिश्रा स्टड फार्म की जमीन पर पेड़ काटने के लिए और इसके क्षतिपूर्ति के लिए आठ महीने पहले आवेदन दिया गया था। मेट्रो कंपनी से क्षतिपूर्ति वाले पेड़ लगाने के लिए राशि मिल गई है। अब इन पेड़ों को लगाने के लिए जगह तलाश की जा रही है। वहीं टाउन प्लानर सुयश कुलश्रेष्ठ का कहना है कि मेट्रो के डिपो में पूरे इलाके में निर्माण नहीं होता है। यदि छह एकड़ के इलाके में व्यवस्थित नियोजन के अनुसार कार्य किया जाए तो 40 फीसदी पेड़ बचाए जा सकते हैं। लेकिन कम्पनी काम में सुगमता के लिए सभी पेड़ो को काटने पर तुली है। राजधानी में पिछले कुछ दशकों में हरियाली घटते हुए न्यूनतम स्तर पर आ चुकी है। यह न केवल तकनीकी तौर पर गलत है साथ ही पर्यावरण के लिए भी गलत है।

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