माघी पूर्णिमा 16 फरवरी बुधवार को मनाया जाएगा माघी पूर्णिमा का पर्व
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माघी पूर्णिमा 16 फरवरी बुधवार को मनाया जाएगा माघी पूर्णिमा का पर्व

माघी पूर्णिमा 16 फरवरी बुधवार को मनाया जाएगा माघी पूर्णिमा का पर्व
Editor in Chief Abhishek Malviya 
सांचेत माघी पूर्णिमा का पर्व बुधवार को मनाया जाएगा पंडित अरुण कुमार शास्त्री जी ने बताया है माघी पूर्णिमा महत्व, तिथि और पूजा विधि माघी पूर्णिमा पर संयम से रहना, सुबह स्नान करना एवं व्रत, दान करना आदि नियमों का उल्लेख ग्रंथों में भी मिलता है। इस दिन खासतौर पर प्रयाग संगम पर स्नान करने का अत्यधिक पुण्यदायी माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन देवलोक से देवतागण पृथ्वी पर आते हैं। इस बार माघी पूर्णिमा 16 फरवरी 2022, बुधवार को पड़ रही है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा का भी महत्व है। पंडित अरुण कुमार बताते हैं कि
माघ मास के अंतिम दिन की तिथि को माघी पूर्णिमा कहते हैं। माघी पूर्णिमा, मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में। 
माघी पूर्णिमा पर विशेष शोभन योग बन रहा है। 
माघ पूर्णिमा तिथि 
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 16 फरवरी 2022, बुधवार प्रातः 09: 42 मिनट पर 
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 16 फरवरी 2022, बुधवार रात्रि 10: 55 मिनट पर
शोभन योग: रात्रि 08: 43 मिनट तक 
मान्यता के अनुसार माघी पूर्णिमा पर देवता भी गंगा स्नान के लिए प्रयाग आते हैं।
माघ पूर्णिमा का महत्व 
माघ पूर्णिमा बहुत ही महत्वपूर्ण है। जो साधक माघ मास में संगम नदी के किनारे रहकर व्रत और संयम के साथ स्नान ध्यान करते हैं और माघ पूर्णिमा के दिन अपने कल्पवास की परंपरा को पूर्ण करते हैं, उनके लिए माघ पूर्णिमा बहुत ही विशेष मानी जाती है। मान्यता है कि माघी पूर्णिमा के पावन दिन श्री हरि विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इसलिए इस दिन गंगास्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। ज्योतिष के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा पर चंद्रमा मघा नक्षत्र और सिंह राशि में स्थित होता है। मघा नक्षत्र होने पर इस तिथि को माघ पूर्णिमा कहा जाता है। मान्यता के अनुसार माघी पूर्णिमा पर देवता भी गंगा स्नान के लिए प्रयाग आते हैं, इसलिए माघ मास की पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान करना बहुत शुभ माना गया है। 
माघ पूर्णिमा के दिन ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें।
माघी पूर्णिमा पूजन विधि 
माघ पूर्णिमा के दिन ब्रह्ममुहूर्त में गंगा स्नान करना चाहिए। यदि संभव न हो तो गंगाजल को जल में मिलकर स्नान कर सकते हैं। 
स्नान के उपरांत ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें। 
फिर तिलांजलि देने के लिए सूर्य की ओर मुख करके खड़े हो जाएं और जल में तिल डालकर उसका तर्पण करें। 
इसके बाद पूजा प्रारंभ करें।  
भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि चीजें अर्पित करें। 
अंत में आरती और प्रार्थना करें।

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