भोपाल । प्रदेश में पिछले कुछ सालों में अवैध और जहरीली शराब के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। सरकार ने अवैध और जहरीली शराब पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं। लेकिन शराब का काला कारोबार जारी है। ऐसे में इंदौर के एक शराब व्यवसाई ने एक नया सॉफ्टवेयर डेवलप किया है जिससे कि अवैध शराब बिक्री रोकने में मदद मिल रही है। प्रदेश में करीब 78 शराब दुकानों पर फिलहाल इस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है।
इस नए सॉफ्टवेयर में बोतलों पर लगे हुए होलोग्राम को स्कैन करते ही वैध और अवैध शराब का पता पड़ जाएगा। साथ ही सॉफ्टवेयर के माध्यम से किस काउंटर से बोतल बेची गई है, इसकी भी जानकारी सॉफ्टवेयर में रहेंगे। सॉफ्टवेयर के जरिए ठेकेदार ना सिर्फ स्टॉक में होने वाली गड़बड़ रोक रहे हैं एमएसपी और एमआरपी के बीच कीमतों में आने वाले अंतर को रोककर अपना मुनाफा भी बढ़ा रहे हैं। प्रदेश की 70 से ज्यादा दुकानों पर इसका उपयोग हो रहा है। सॉफ्टवेयर डेवलपर ने बताया कि डिस्टलरी से निकलने के बाद हर बोतल पर सरकार द्वारा दिए जाने वाले बार कोड या होलोग्राम लगाए जाते हैं। सॉफ्टवेयर उसी बारकोड को स्कैन करता है जो अधिकृत हैं। नकली बार कोड इसमें रजिस्टर होते ही वो बोतल बेचने की इजाजत नहीं देता।
कीमतों पर रहेगा नियंत्रण
कम्प्यूटर, बार कोड स्कैनर, सीसीटीवी कैमरे और बड़ी टीवी स्क्रीन वाले सेटअप के जरिए सॉफ्टवेयर से किसी भी गलत सेल को रोका जा रहा है। उनके अनुसार कई बार दुकान पर बैठने वाला सेल्समेन, ठेकेदार द्वारा तय की गई कीमत से ज्यादा पर बोतल बेचता है। जिसका मुनाफा भी सेल्समेन रखता है। एमएसपी और एमआरपी के बीच के अंतर की वजह से ऐसा होता है। सॉफ्टवेयर में ठेकेदार द्वारा तय कीमत फीड करने के बाद सेल्समेन उसे ज्यादा कीमत पर नहीं बेच सकता। यदि सेल्समेन बगैर स्कैन किए बोतल बेचने की कोशिश करता भी है तो सीसीटीवी के जरिए उस पर निगरानी की जा सकती है। इसकी रियल टाइम रिपोर्ट मोबाइल पर किसी भी समय जांची जा सकती है।
सरकार के लिए उपयोगी
पूरे प्रदेश में 78 दुकानों पर इस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। दुकानदारों को इसकी वजह से सबसे ज्यादा मदद स्टॉक और उधार दिए जाने वाले माल का हिसाब मेंटेन करने में मिल रही है। इस सॉफ्टवेयर को सरकार के लिए और भी ज्यादा उपयोगी बताया गया है। इसके जरिए वे अवैध शराब पर आसानी से नजर रख सकते हैं। सरकारी तंत्र में स्टॉक सहित कई हिसाब रखने के लिए पारंपरिक तरीके अपनाए जा रहे हैं जबकि सॉफ्टवेयर ज्यादा उपयोगी है।