कोरोना में मरती संवेदनाए
70 वर्षीय बुजुर्ग महिला को लोगों ने अपने वाहन पर अस्पताल ले जाने से किया मना
अभिषेक मालवीय एडिटर इन चीफ
रायसेन/ जिला मुख्यालय रायसेन का मामला जहां इंसानियत मरती हुई दिखाई दे रही है कोरोना कॉल में मप्र के स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी के गृह क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं के क्या हाल है.. ओर कोरोना को लेकर लोगो मे कितना डर हैं..! इसका अन्दाजा आप मानवता को शर्मसार करने वाली इन तश्वीरो को देख कर आसानी से लगा सकते है। रायसेन के वार्ड एक नरापुरा निवासी 70 वर्षीय बसंती बाई को सर्दी जुकाम बुखार की शिकायत हुई तो कोई अपने वाहन से उन्हें अस्पताल तक ले जाने के लिए तैयार नही हुआ, लॉकडाउन के कारण नगर में ऑटो बंद है। ऐसे में बुजुर्ग महिला के सब्जी का ठेला लगाने वाले नाती नीलेश कुशवाह ने अपने हाथ ठेले को ही एम्बुलेंस बना कर बूढ़ी नानी को बैठा लिया..ओर इलाज के लिए उन्हें एक किमी दूर एक निजी डॉक्टर के क्लीनिक पर दिखाने पहुँच गया। नगर में जब हाथ ठेले पर बैठी बीमार बुजुर्ग महिला को देखकर सभी हैरत करने लगे लेकिन कोई उनकी मदद के लिए आगे नही आया। अब मोहल्ला फीवर क्लीनिक के नाम सुविधाओं का दम भरने वाले प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के गृह नगर में स्वास्थ्य सेवाओं का जब यह हाल है तो आप प्रदेश में कोरोना के डर और अन्य बीमारियों से जूझ रहे मरीजो के हाल का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं।
रायसेन में उस समय लोग हैरान हो गए जब एक सर्दी जुखाम की पीड़ित 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला को अस्पताल तक ले जाने के लिए उनके नाती नीलेश कुशवाहा ने लोगों के आगे हाथ पैर जोड़ें लेकिन उसके बाद भी कोई अपने वाहन में बसंती बाई की मदद के लिए तैयार नहीं हुआ। जब ऐसे हालात में नाती नीलेश से रहा नहीं गया तो उसने अपने व्यवसाय करने वाले हाथ ठेले पर ही अपनी नानी बसंती बाई को बैठा कर एक किलोमीटर दूर एक प्राइवेट डॉक्टर के पास इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ा। कोरोना काल में लोगों की संवेदनाएं किस तरह खत्म होती जा रही है इसका ताजा उदाहरण यह घटना है। जहाँ साधारण सर्दी जुखाम से पीड़ित बुजुर्ग महिला मरीजी की भी मदद करने को कोई तैयार नही हुआ। अब प्रदेश सरकार लाख मोहल्ला फीवर क्लीनिक की सुविधाएं देने के दावे करें लेकिन जमीनी हकीकत हमारे सामने है। इस कोरोना ने आम लोगो की संवेदनाएं ओर सरकार की जबाबदारी दोनो ही खत्म से कर दी है तभी शायद हमे ऐसे तश्वीरें अब भी देखने को मिल रही हैं।
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