कुछ महीने पहले कैंट में जनता स्वीट्स व टांगरी नदी के पास जो 2 पप्पी (पोलू और पोपी) बीमार और बुरी हालत में मिले थे, अब वो अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर पहुंच गए हैं। उन्हें वहां के दो दंपती ने एडॉप्ट किया है। इन दो स्ट्रे डॉग की कहानी रोचक है। आर्मी के कर्नल की बेटी जोया खान बताती हैं कि वह दोनों पप्पी को घर ले गई थी। 4 महीने तक ट्रीटमेंट और हाउस ट्रेनिंग दी। जब वे हेल्दी हो गए तो अडॉप्शन के लिए इंस्टाग्राम पेज पर पोस्ट किया। कुछ समय बाद द मॉडर्न माेगली ऑर्गनाइजेशन और यूएस की ऑर्गनाइजेशन रेस्क्यू विदाउट बॉर्डर की मदद से न्यूयार्क के दो परिवारों ने इन डॉग्स को अपनाने में दिलचस्पी दिखाई। लॉकडाउन से पहले पेट फ्लाई अवे कंपनी की मदद से दोनों डॉग फ्लाइट से न्यूयॉर्क पहुंचे।
इस पर 75 हजार रुपए खर्च आया। जाेया ने साेशल मीडिया, अपनी सेविंग व संस्थाओं के सहयाेग से यह पैसे इकट्ठे किए। पाेलू और पाेपी की तरह जाेया ऐसे ही स्ट्रीट डाॅग को पंजाब और हरियाणा में अडॉप्ट करवा चुकी हैं। अब 5 स्ट्रीट डाॅग की घर में देखभाल कर रही है और उनके लिए फैमिली की तलाश है। जाेया बताती हैं कि वे अपने इंस्टाग्राम पेज स्ट्रीट डाॅग के अडाॅप्शन व ट्रीटमेंट के लिए पाेस्ट डालती हैं। वहां से मिली मदद के साथ-साथ जाेया की बहन जैबा भी फंड के लिए मदद करती हैं। 27 साल की जाेया इग्नू से न्यूट्रीशियन की पढ़ाई कर रही हैं। जैबा एक कंपनी में इलस्ट्रेटर हैं।
मां को जानवरों को खाना खिलाते देखा, वहीं से सीखा
कैंट के आनंद नगर की जाेया बताती हैं कि बचपन से ही देखती थी कि मां अकसर कुत्ते, बिल्लियों, गाय व पक्षियों को खाना खिलाती थी। 2018 में मां की मौत हो गई। नवंबर 2018 में वही काम शुरू किया जो मां ने अधूरा छोड़ा था। एनीमल्स के लिए काम करने वाली द मॉर्डन माेगली से प्रेरणा मिली। तब पता चला कि स्ट्रीट डॉग्स काे खाना ताे काेई भी दे देगा। अगर इनकाे देना है ताे एक घर दिया जाए। जाेया ने स्ट्रीट डॉग्स के अडाॅप्शन, ट्रीटमेंट व रेस्क्यू के लिए काम करना शुरू किया। जाेया ने एनजीओ से ट्रेनिंग ली।
फ्रांस, अमेरिका, नीदरलैंड, जर्मनी व कनाडा में डिमांड
हम देसी कुत्ते कहकर दुत्कारतें हैं और विदेशी नस्ल के डॉग को नाज़ से रखते हैं। जबकि अमेरिका, फ्रांस, नीदरलैंड, कनाडा व जर्मनी जैसे देशों में इंडियन परिअा डॉग्स (स्ट्रीट डॉग्स) की खूब डिमांड है। वजह इनकी इम्युनिटी कमाल की है। ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं। ये समझदार और सक्रिय होते हैं और आसानी से ट्रेनिंग दी जा सकती है। देसी नस्ल बड़ी आसानी से किसी भी स्थान, परिवेश में ढल जाते हैं।
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