समापन नहीें ये आगाज है-अदिवासीयों ने भरी हुंकार 
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समापन नहीें ये आगाज है-अदिवासीयों ने भरी हुंकार 

समापन नहीें ये आगाज है-अदिवासीयों ने भरी हुंकार 
जल जंगल जमीन पर हमारा जन्मजात संवैधानिक अधिकार


38 जिलों एवं 135 विकास खंडो के 80 से अधिक सामाजिक संगठनो के लगभग दस से बारह हजार अदिवासियों ने समस्याओं व मांगों को संकलित कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा          


राहुल श्रीवास्तव / समाधान पाटिल
भोपल -  आदिवासी के लिए जमीन एक आर्थिक श्रोत नहींए उसकी गरिमा पहचान और जीवन पद्धति का मुद्दा है। आदिवासी का जमीन पर मालिकाना हक न्याय संगत दुनियाए विश्व शांतिए एकादिशात्मक और सरलीकृत विकास के विरुद्ध सांस्कृतिक विविधता और लैंगिक न्याय का प्रतीक है।
           रविवार को जल जंगल जमीन और जीवन के लिए संघर्षरत आदिवासी अपनी मॉगों को लेकर भोपाल भेल दशहरा मैदान पहुंचे जहॉ अदिवासी हुंकार रैली के आयोजक गुलजार सिंह मरकाम ने हजारों आदिवासीयों को संबोधित करते हुए उक्त बात कही। श्री मरकाम ने बताया कि पीडित आदिवासी हुंकार रैली के माध्यम से अपने जल जंगल जमीन हमारा अधिकार है व यही हमारी पहचान है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से 1 करोड़ से अधिक आदिवासीयों को जंगल बेदखली का आदेश पारित किया गया था। इसकी अगली सुनवाई 26 नवम्बर को होनी है। इस अन्याय के खिलाफ आज हमें मजबूरन एकत्रित हो संघर्ष रास्ता अपानाया है यह हुंकार रैली एक करोड अदिवासियों की ओर से सरकार को चेतावनी है। सरकार इसे समापन न समझे यह तो आगाज है अदिवासीयों के अपने हक के लिए खडे होने का। यदि शासन ने अदिवासियों के हक अैर अधिकार के साथ अन्याय किया तो अगली बार फिर इससे 10 गुनी संख्या में आदिवासी संसद का घेराव करने दिल्ली कूच करेंगें। 


                भेल दशहरा मैदान एकत्रित होने से पूर्व भोपाल पहुंचे आदिवासियों ने भोपाल रेल्वे स्टेशन से रैली निकाली। लडेंगे जीतेंगेंएकार्पोरेट की लूट बंद करोएबंद करो! हम अपना अधिकार मॉगते नहीं किसी से भीख मॉगते का नारा व क्रॉतिकार गीतों से मन में जोश लिए भेल दशहरा मैदान पहुंचे। रैली में लगभग लोग अपने भगवान विसरामुंडा और आदिवासी नेताओं की तस्वीर लिए जौशीले नारे लगाते हुए चलते रहे थे। जल जंगल जमीन किसकी है हमारी है। हमारी है! जमीन से बेदखली अब बर्दास्त नहीं,जैसे नारे लगाते हुए हजारों आदिवासी मप्र के अलग अलग ऑचलों से और सुदूर इलाकों से अपनी रोटी पानी बाँधकर राजधानी भोपाल के भेल दशहरा मैदान पहुंची। 


              हुंकार सभा को संबोधित करते हुए केन्द्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि पाँचवी अनुसूची पेसा कानुन वनाधिकार कानून संविधान में आदिवासियों को अधिकार दिये हैं बस आवश्यकता इस बात की है कि कानून को पूर्णतः जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन किया जाये जिसकी हम अनुशंसा हर स्तर पर करेंगे। 
                ग्रहमंत्री बाला बच्चन ने अदिवासीयों की बात को ध्यान से सुना और कहा कि अप अपने मॉग पत्र दे दें आपकी उक्त सभी मांगों से वे मुख्यमंत्री को अवगत कराऐंगें। उन्होने आश्वासन दिया की आकी मॉगें न्याय संगत हैए सरकार उनकी सभी मांगों को पूरा के लिए वचनबद्ध हैं।
                   झाबूआ से विधायक कांतीलाल भूरिया ने कहा जल जंगल जमीन पर पहला हक आदिवासियों का है इसे कोई छीन नहीं सकता। संविधान में आदिवासी क्षेत्रों व इन क्षेत्रों में निवास करने वाले समुदाय को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने पांचवी अनुसूची बनाई गई। पेसा कानून आदिवासियों एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों को उनके जल.जंगल.जमीन पर अनुसूचित जनजाति एवं अन्य वनाधिकारों की मान्यता देता है।
                            आदिमजाती कल्याण मंत्री ओंकार सिंह मरकाम ने कहा प्रदेश सरकार ने आदिवासी दिवस पर अवकाश की घोषणा की है साथ ही आदिवासी लोक संस्कृति को संरक्षित करने के लिए प्रदेश में जिला स्तर पर व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आदिवासियों के लिए घोषित अनुशंसा का पालन पूर्ण रूप से किया जायेगा।
                        नर्बदा बॉध विस्थापितों के लिए संघर्षरत मेधा पाटेकर ने महिलाओं का हौसला बढ़ाया और कहा कि ऐसा विकास सही नहीं होता जिससे विनाश हो। उन्होने पांचवी सूची पर अपने विचार रखते हुए कहा कि हमें अपनी आवाज को दिल्ली तक ले जाना होगा वरना पूंजीपतियों का हमारे वन संसाधनों पर काबिज किया जाना दूर नहीं।
                         आदिवासी हुंकार यात्रा को संबोधित करते हुए आदिवासी नेता फागराम ने कहा आजादी की दूसरी लडाई का आगाज अदिवासीयों की हुंकार रैली से हो चुका है। हर आदिवासी को अपने अधिकार के लिए आज स्वयं लड़ना होगा और अपनी बात खुद रखनी होगी। आदिवासी मुक्ति संगठन सेंधवा के राजेश कन्नौज ने कहा कि हम सरकार को याद दिलाने आए हैं जो अपने घोषण पत्र में जो किये है उन्हे पुरा करें। महेन्द्र कन्नौज ने कहा हम आदिवासी है जंगलों को खत्म कर हर आदिवासी को जंगल छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। हुंकार यात्रा में महिला नेता के द्वारा अपने विचार रखे गये। जयस की सीमा मास्कोले ने बोला कि आदिवासी महिलाओं पर वन अधिकारियों के द्वारा हिंसा की जाती है। रस्ते में आते जातेए लकड़ी लाते जबरन परेशान किया जाता है। आदिवासी महिला अपने बच्चों व परिवार का पोषण जंगल से करती है और उसे खत्म करना हमें खत्म करना है। ये हिंसा रोकने में हमें आगे आना होगा।
                   सहरिया आदिवासी समाज के फूलसिंह ने कहा कि जो जमीन सरकारी है वो जमीन हमारी है। जिसे सरकार को हम बना सकते हैं उसे मिटा भी सकते हैं। आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखली बर्दाश्त नहीं करेगें। डिंडौरी की श्याम कुमारी धुर्वे ने अपनी भाषा में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आदिवासी का जीवन आजीविका संस्कृति पहचान परम्पराएं जंगल,नदी,पहाड़ और प्रकृति पर निर्भर है। आदिवासी सदियों से जंगली जानवरों,पेड पौधे सहित असंख्य विविधताओं के साथ सामंजस्य बनाकर रहता आया है, तो वन्य जीव सरंक्षण के नाम पर उनके जंगल से उनकी बेदखली क्यों, कैम्पा के नाम पर उनके संसाधनों को निजी कंपनियों और कार्पोरेट घरानों को सौपने की तैयारी क्यों, इसी कड़ी में जयस संगठन के लोकेश मुजाल्दा ने कहा कि आज के दौर में पूंजीपति भूमि सुधारों की कोई जगह नहीं है । भूमि सुधार का सही मायने में अर्थ संसाधनों पर पूंजीवादी वर्चस्व के खिलाफ वर्ग संघर्ष है।
                   मंडला से चुटका परमाणु परियोजना संघर्ष समिति के दादूलाल कुडापे ने कहा कि सरकार जंगल में बीजली बनाने का कहकर आदिवासी के बसे बसाये घरों को उजाड़ रही है। सवाल करो तो हर जवाब विकास रहता है। मंडला जिले से भाई कमल सिंह मरावी ने कहा कि आदिवासी समाज खतरे में है। भारत में भू.सुधार का सबसे बड़ा कानून व आदिवासी अधिकारों को प्रदान करने वाला यह कानून स्वयं भी भारतीय राजनीति व तथाकथित पर्यावरणविदों का शिकार हो गया। अलीराजपुर से आई महिला ने मंच पर आकर अपने गाँव की बात रखी कि गाँव में खानों में मजदूरी कर रहे परिवार बीमारी से मर रहे हैं। न उन्हें मुआवजा मिल रहा है न ही उनके पूर्नवास की समुचित व्यवस्था की जा रही है। 
                                       यात्रा में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों जैसे ग्वालियर चंबलएबुंदेलखंड,विध्य, महाकौशल, मालवा.निमाड, एवं मध्यांचल के 38 जिलों एवं 135 विकास खंडो के 80 से अधिक सामाजिक संगठनो के लगभग दस से बारह हजार अदिवासियों के द्वारा अपने क्षेत्र की समस्याओं व मांगों को संकलित कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा जिसमें मुख्य रूप से वन अधिकार कानून व पेसा कानून को यथावत रहने की मांग की गई है। आज उपस्थित लगभग 10 हजार से अधिक आदिवासियों ने जल जंगल जमीन व जीवन पर अपने संवैधानिक जन्मजात हक जताते हुए हर हाल में अपने अधिकार लेने के लिए हुंकार  भरी।
 


 


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