मंदसौर। प्रर्वाधिराज प्रर्यूषण पर्व की महत्ता प्रत्येक श्रावक
श्राविकाओं को समझना चाहिये तथा प्रर्यूषण पर्व के 8 दिवस में मन, वचन,
काया से कोई पापकर्म न हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। प्रर्वाधिराज प्रर्यूषण
पर्व के समाज कोई पर्व नही है। संसार के जितने पर्व आते है वे लौकिक पर्व
है उसमें आनंद व उत्पादन का उदेश्य रहता है। लेकिन पर्वाधिराज प्रर्यूषण
पर्व तप, त्याग की प्रेरणा देते है जीवन में हमें प्रर्यूषण पर्व की
महत्ता को समझना चाहिए और 8 दिवस में जीवहिसा से बचना चाहिए तथा तप करना
चाहिए।
उक्त उदगार परम पूज्य जैन आचार्य श्री पियुषभद्रसूरिश्वर जी मसा ने
आराधना भवन मंदिर हाल में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने बुधवार को यहॉ
आयोजित धर्मसभा में कहा कि प्रर्यूषण में पुण्य का पोषण करना चाहिए तथा
पाप का त्याग करना चाहिए प्रर्यूषण पर्व समान कोई पर्व नही है। यह पर्व
कर्म का भेद ज्ञात कराता है। मनुष्य को अच्छे व बुरे दोनो प्रकार के कर्म
का फल भोगना ही पडता है। आपने श्रीकृष्ण की पत्नि रूकमणी का वृतान्त
श्रवण कराते हुये कहा कि श्रीकृष्ण की पत्नि रूकमणी ने पूर्व भव में
मोरनी के अण्डे 16 घंडी के लिये आपने पास रख लिये थे। उसके कारण मोरानी
को 16 धडी तक अपने अण्डे से दूर रहना पडा था। इसी कर्म के प्रभाव के कारण
रूकमणी के पुत्र पदपुमन को उनके जन्म के बाद किसी ने चुरा लिया था।
रूकमणी को इसी कर्म के प्रभाव के कारण 16 वर्ष तक अपने पुत्र से दूर रहना
पडा तथा उसका वियोग सहन करना पडा। जीवन मे जब भी कर्म करो सोच समझकर
विवके से करो अन्यथाा उन्हे भोगते समय रोना पडेगा। आपने कहा कि कर्म की
प्रवृत्ति 28 प्रकार की है जिसमें मित्थात्म मोहिनी कर्म सभी कर्मो की जड
18 प्रकार के पापकर्म बताये गये है । इसमें भी मोहिनी कर्म पापकर्म की
जड है सर्वप्रथम हमें इससे बचना चाहिए।
तप करने का भाव बनाये- आचार्य श्री पियुषभ्रद्रसूरिश्वर मसा ने कहा कि
मंदसौर धर्मनगरी व तपो नगरी है। यहॉ पूर्व में भी बडी बडी तप तपस्याये
हुई है। प्रर्यूषण पर्व में सभी श्रावक श्राविकाये तप तपस्याये करने के
भाव बनाये तथा मासखमण उठायी तेला बेला या उपवास जरूर करें। प्रर्यूषण
पर्व में की गयी तप तपस्याये निश्चिित फलदायी होती है।
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