![](https://pradeshlive.com/wp-content/uploads/2022/07/Dinesh_Khatik.jpg)
लखनऊ। कैबिनेट मंत्री अपने विभाग के राज्यमंत्री के साथ समन्वय बनाएं। उन्हें भी विभागीय बैठकों में शामिल करें। मंत्री समूह की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह बात कहते हैं और शाम को यह चर्चा सुर्खियां पकड़ लेती है कि जल शक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि विभाग में उनके साथ भेदभाव हो रहा है, अफसर बात नहीं सुनते। इसका मतलब सुलग रही चिंगारी की आंच वहां तक पहुंच चुकी थी। व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करने वाले भले ही यह अकेले मंत्री हों, लेकिन इस अव्यवस्था के शिकार लगभग सभी राज्यमंत्री हैं। वह नाम के तो राज्यमंत्री हैं, लेकिन काम कोई नहीं दिया गया।
योगी सरकार 2.0 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा 52 मंत्री बनाए गए हैं। इनमें 18 कैबिनेट मंत्री, 14 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 20 राज्यमंत्री बनाए गए हैं। सीएम योगी शुरुआत से ही इस बात पर जोर देते रहे हैं कि मंत्री आपसी समन्वय के साथ काम करें। विकास के समग्र प्रयास के लिए ही उन्होंने 18 मंत्री समूह बनाए तो उसमें भी राज्यमंत्रियों को साथ लगाया। विभागीय कार्ययोजना के प्रस्तुतीकरण का अवसर उन्हें दिया, लेकिन वास्तविकता में राज्यमंत्री खाली हाथ ही रह गए। कुछ विभागों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश में कैबिनेट मंत्री और राज्यमंत्री के बीच में काम का बंटवारा आज तक नहीं हो सका है। कुछ कैबिनेट मंत्री अपने राज्यमंत्रियों को बैठक आदि में तो बुलाते हैं, लेकिन इससे अधिक उनकी कोई भूमिका नहीं रहती।
हकीकत में विभागों के अंदरूनी हालात क्या हैं, यह दिनेश खटीक के वायरल पत्र में स्पष्ट है। इसमें बताया गया है कि अधिकारी बैठक की सूचना नहीं देते। पत्र का जवाब नहीं देते। कहने से कोई काम नहीं करते, यहां तक कि फोन पर भी ढंग से बात नहीं करते। कैबिनेट मंत्री और प्रमुख सचिव या अपर मुख्य सचिव ही विभागों की कमान अपने हाथ में थामे हुए हैं। इस संबंध में कुछ राज्यमंत्रियों से बात की गई तो वह कुछ भी कहने से बचते रहे। सिर्फ इतना ही बोले कि हम और कैबिनेट मंत्री मिलकर काम कर रहे हैं। 'क्या लिखित रूप से आपके बीच काम का बंटवारा हुआ है?' इस प्रश्न पर लगभग सभी ने चुप्पी साध ली। अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी ने जरूर बताया कि उनके विभाग में काम का विधिवत बंटवारा हो चुका है।
एक पूर्व राज्यमंत्री ने बताया कि उन्होंने स्वयं भी इस अव्यवस्था को झेला है। स्पष्ट कहा कि मुख्यमंत्री का हमेशा जोर रहा है कि काम का बंटवारा हो और समन्वय के साथ काम हो, लेकिन इस व्यवस्था के लागू होने में सबसे बड़ी बाधा प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव हैं। वह नहीं चाहते कि उनके ऊपर ज्यादा 'पावर सेंटर' रहें। वह कैबिनेट मंत्रियों को खुश रखते हैं और राज्यमंत्रियों की अनदेखी करते हैं। चूंकि, अमूमन राज्यमंत्रियों के पास कोई अधिकार नहीं होता, इसलिए उनसे किसी भी प्रकार की कार्रवाई का डर भी अधिकारियों को नहीं होता। फिर कैबिनेट मंत्री भी अपने अधिकारों में बंटवारा क्यों चाहेंगे?
Please do not enter any spam link in the comment box.