अखिलेश ने किया किनारा, बसपा में जाने की आस भी टूटी, अब भाजपा ही राजभर का सहारा
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अखिलेश ने किया किनारा, बसपा में जाने की आस भी टूटी, अब भाजपा ही राजभर का सहारा


नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता का राग अब बेसुरा होने के कगार पर है। दरअसल, विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ सपा की अगुवाई में बना विपक्षी खेमा बिखरने लगा है। सपा से गठबंधन टूटने के बाद सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर अब बसपा से हाथ मिलाने की बात कर रहे, लेकिन मायावती उन्हें तवज्जो नहीं दे रही हैं। बीजेपी भी राजभर को फिर से साथ लेने के लिए बहुत जल्दबाजी के मूड में नहीं दिख रही है। सपा से किनारा कर कहीं राजभर सियासी मझधार में फंस तो नहीं गए हैं?
ज्ञात हो कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने शनिवार को शिवपाल सिंह यादव और सहयोगी ओम प्रकाश राजभर को 'आजादी' वाला लेटर भेजा तो दोनों ही नेताओं ने अखिलेश के इस 'तलाकनामे' को स्वीकार भी कर लिया। सपा से दोस्ती टूटने के बाद राजभर नए सहयोगी की तलाश में जुट गए हैं। ऐसे में राजभर की पहली प्राथमिकता बसपा नजर आ रही है और मायावती के साथ गठबंधन करने का खुला ऐलान कर रहे हैं।
ओम प्रकाश राजभर को मालूम है कि बसपा सूबे में अपनी सियासी जड़े जमाने में जुटी है। मायावती अपने संगठन में दलितों के साथ मुस्लिमों को भी ला रही हैं। यही वजह है कि राजभर की कोशिश बसपा से गठबंधन करने की है। राजभर ने कहा कि अब हम गठबंधन के लिए बसपा अध्यक्ष मायावती का दरवाजा खटखाटएंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि पूर्वांचल में उनकी पार्टी का मजबूत संगठन हैं। अगर बसपा के साथ उनके समाज का वोटर जुड़ जाएगा तो बसपा और मजबूत होकर उभरेगी। 2024 के पहले अभी बहुत गोलबंदी होगी देखते जाइए।
राजभर भले ही अपनी तरफ से बसपा से हाथ मिलाने की बात कर रहे है। लेकिन मायावती ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने राजभर को 'स्वार्थी' करार दिया है। आकाश आनंद ने सोमवार को किसी का नाम लिए बगैर कहा, 'कुछ अवसरवादी लोग भी बहनजी के नाम के सहारे अपनी राजनीतिक दुकान चलाने की कोशिश करते हैं। ऐसे स्वार्थी लोगों से सावधान रहने की जरूरत है।' इससे साफ जाहिर होता है कि बसपा, राजभर को कोई खास तवज्जो नहीं दे रही है।
वहीं, ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ दोबारा से हाथ मिलाने के लिए बीजेपी भी बहुत ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रही। राजभर ने जरूर कहा कि बीजेपी की ओर से कोई ऑफर आता है तो जरूर राय-मशवरा करेंगे। बीजेपी इस बार उन्हें लेकर बहुत सावधानी के साथ कदम बढ़ा रही है। बीजेपी इस बात को समझ रही है कि मायावती के किनारा करने के बाद सूबे में राजभर के पास कोई खास सियासी विकल्प नहीं बचा रहा है। हालांकि, राजभर ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को समर्थन किया था। बीजेपी और राजभर की दोस्ती में एक बड़ा रोड़ा मुख्तार अंसारी को माना जा रहा है। राजभर का मुख्तार अंसारी मोह, जिसे बीजेपी पचाने के लिए तैयार नहीं हैं। विधानसभा चुनाव से पूर्व राजभर ने जेल में मुख्तार अंसारी से मिले थे और सूबे में उन्हीं की एक एकमात्र पार्टी है जो अंसारी बंधुओं का खुलकर समर्थन करते रही है। राजभर की पार्टी सुभासपा से मुख्तार अंसारी के पुत्र अब्बास अंसारी विधायक हैं। ऐसे में राजभर न तो अंसारी बंधुओं से किनारा कर सकते और न ही मुख्तार अंसारी के चलते भाजपा उनको साथ नहीं ले सकती। योगी आदित्यनाथ की सरकार अंसारी बंधुओं पर नकेल कर सियासी एजेंडा सेट कर रही है।





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