भोपाल । नगर निगम व पंचायत चुनाव का बिगुल बजने के बाद प्रदेशभर की तहसील अदालतों में नपती एवं बंटवारे के हजारों केस उलझ गए हैं। अधिकांश मामलों में सिर्फ तारीख लग रही है। चुनाव की घोषणा के बाद आम नागरिक के रोजमर्रा के काम अटकने लगे हैं। सूत्रों के मुताबिक सामान्यत: 1 अप्रैल से 15 जून तक तहसीलों में सीमांकन, यानी जमीन की नपती के प्रकरण लिए जाते हैं, लेकिन प्रदेशभर की तहसीलों में अधिकांश जगह लोक सेवा केंद्रों पर अब इन्हें लेने में आनाकानी की जा रही है और समय खत्म होने का हवाला देकर आवेदकों को टरकाया जा रहा है, जबकि अभी तक 15 जून की आखिरी समयसीमा में कोई संशोधन नहीं हुआ है। इसी तरह मप्र की तमाम तहसील अदालतों में बंटवारे के प्रकरण लगे हुए हैं, लेकिन उन्हें निपटाने में सहायक भूमिका निभाने वाले पटवारी, नायब तहसीलदारों व तहसीलदारों की चुनाव कार्य में ड्यूटी लगने से ये मामले भी लंबित होते जा रहे हैं।
अधिकांश प्रकरणों में बंटवारे की फर्द तैयार नहीं हो पा रही है। यही हालात प्रकरणों के निपटान के भी हैं। अधिकांश प्रकरणों में सिर्फ तारीख ही लग रही है, जबकि सरकार की समयसीमा के अनुसार अविवादित बंटवारा प्रकरणों का निपटारा एक माह में हो जाना चाहिए। सीमांकन के प्रकरणों की कार्रवाई भी डेढ़ माह में निपट जाना चाहिए, लेकिन जिन प्रकरणों में विवाद नहीं है, वे भी चुनावी तैयारियों के चलते टलते जा रहे हैं। कारण यह है कि जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों के पास चुनाव की तैयारियां करने व उन्हें संपन्न कराने का जिम्मा है, जिससे राजस्व विभाग में ठंडापन छाया हुआ है।
इस बार चुनावी ग्रहण
सूत्रों की मानें तो अधिकांश जगह कोरोना के चलते दो साल से सीमांकन प्रकरण पूरे नहीं हो पा रहे थे। इस बार अधिकारियों-कर्मचारियों के पास बड़ी संख्या में ये प्रकरण निपटाने के लिए आए थे। अब इस बार लंबित प्रकरणों के बड़ी संख्या में निपटारे की आशा थी, लेकिन प्रदेशभर में चुनाव के चलते तहसीलों में अब अमले के पास दोहरी जिम्मेदारी होने से आशंका जताई जा रही है कि फिलहाल अपेक्षा से कम प्रकरण ही निपट पाएंगे। नपती के अधिकांश प्रकरण कुछ दिन बाद बुवाई की दशा में पेंडिंग हो जाएंगे। ऐसे में तीन-चार माह बाद ही इनका निपटारा हो सकेगा, क्योंकि फसल कटने तक ये काम पूरी तरह बंद रहेंगे।
केंद्रों पर मतदाता सूची के लिए पहुंच रहे दावेदार
चुनावी बयार के चलते प्रदेशभर में गांवों व कस्बों में लोक सेवा केंद्रों पर बड़ी संख्या में मतदाता सूची हासिल करने के लिए दावेदार व उनके समर्थक पहुंच रहे हैं। पंचायत चुनाव में कुछ हफ्ते ही बचे हैं, नतीजतन लोक सेवा केंद्रों पर अब अन्य रोजमर्रा के कार्य की जगह चुनाव से जुड़े कार्यों की बढ़ोतरी हो गई है। आलम यह है कि कुछ केंद्रों पर तो कर्मचारी कार्यभार कम करने के लिए आवेदकों को एमपी ऑनलाइन की सेवाएं लेने की भी सलाह दे रहे हैं।
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