वह परमात्मा सदा तुम्हारे साथ है।।
जो अपने को अकेला समझता है।।
।। वह नास्तिक है ।।
एक बच्चा मेले में जा रहा है,उसने एक हाथ में बाप की ऊंगली पकड़ी हुई है,दूसरे हाथ में मां का पल्लू पकड़ रखा है और वह मेला देख रहा है। वह बिल्कुल निश्चिंत है।वह बच्चा घबराता नहीं है।उसको कोई दुःख नहीं है।वह बहुत सुख भोग रहा है। तुम पूछ सकते हो कि जब उसने बाप का हाथ पकड़ रखा है,तो मान का पल्लू क्यों पकड़ रखा है ? एक ही हाथ काफी है।बाप काफी शक्तिमान है।वह नर है। उसमें नारी से ज्यादा शक्ति है।बच्चे ने बाप का हाथ पकड़ा हुआ है।बाप का हाथ ताकतवर है।बच्चा जानता है,कहीं न कहीं उसकी अंतरात्मा में यह ज्ञान समाया हुआ है कि हो सकता है कि बाप हाथ छुटा ले। अगर कोई आगे से मिल जाता है,उसको नमस्कार करना हो तो दोनों हाथ जोड़ने पड़ सकते हैं। किसी के साथ हाथ मिलाना पड़ सकता है।कोई सामान ही उठाना पड़ सकता है।हो सकता है इस मेले में बाप हाथ छुड़ा ले।इसलिए मां का पल्लू नहीं छोड़ना है। मां है -- भक्ति। बाप है -- ध्यान,ज्ञान।यह बात हमेशा ध्यान में रखना कि ज्ञान फिर भी तुम्हारे भीतर अहंकार पैदा कर सकता है।ध्यानी और ज्ञानी फिर भी पीछे रह जाते हैं।भक्त हमेशा पहुंचता है।भक्ति हमेशा तुम्हारी रक्षा करती है।जहां प्रेम है वहां भक्ति है।जहां भक्ति है ,वहीं परमात्मा है,वहीं भगवान है। तुम्हें उसी से यह मिलती है। यदि तुम्हें सदगुरु मिल जाए,तो और क्या चाहिए? वह सदा तुम्हारे साथ है।जो अपने आप को अकेला समझता है वह नास्तिक है और उसको सदगुरु मिलकर भी नहीं मिला। जो अपने को अकेला समझ कर रोता है कि कोई मेरी सहायता नहीं करेगा वह मंदिर में सदगुरु के दर्शन करने तो चला आता है,परंतु उसको सदगुरु मिलकर भी नहीं मिलता। इसलिए अपने आप को कभी अकेला नहीं समझना।
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