धूल फांक रही बीयू के प्रिंटिंग प्रेस की मशीनें
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धूल फांक रही बीयू के प्रिंटिंग प्रेस की मशीनें



धूल फांक रही बीयू के प्रिंटिंग प्रेस की मशीनें

भोपाल । प्रिंटिंग मशीनें बंद होने से विवि करोडों रुपए का प्रिंटिंग कार्य बाहर से करवा रहा है। इस तरह से सालाना बीयू को करोडों की चपत लगाई जा रही है। सूत्रों की माने तो बीयू में प्रेस की स्थापना 1981 में इसलिए की गई थी, ताकि विवि को बाहर से दूसरी एजेंसी से उत्तरपुस्तिकाएं, रजिस्टर, लिफाफा, उपस्थिति पंजी आदि तैयार ना कराना पड़े। प्रेस में चार मशीनें है, जिसमें तीन बंद हैं और एक चालू है, लेकिन कलपुर्जे न मिलने से वे भी बंद होने की कगार पर हैं। ऐसे में विवि प्रशासन अपने ही प्रिंटिंग प्रेस से कुछ भी लाभ नहीं ले पा रहा है। हर साल बीयू प्रशासन करीब 30 लाख उत्तरपुस्तिका के अलावा सप्लीमेंट्री के लिए भी करीब 15 लाख उत्तरपुस्तिकाओं को बाहर से एक-डेढ़ करोड़ रुपये में खरीदता है। अगर विवि में स्थापित प्रिंटिंग प्रेस से उत्तरपुस्तिकाएं तैयार करवाता तो विवि इसका काफी हिस्‍सा बचा लेता। साथ ही परिणाम घोषित होने के बाद इन उत्तरपुस्तिकाओं को 30 लाख रुपये में रद्दी के भाव बेच देता है। प्रिटिंग प्रेस द्वारा कई सालों से 30 से 35 लाख की आधुनिक आफसेट मशीन की मांग की जा रही है, पर विवि प्रशासन इसकी अनदेखी कर रहा है। अगर आधुनिक मशीन लग जाए तो बीयू उत्तरपुस्तिकाओं को खुद ही पूर्ति कर सकेगा। हालांकि कर्मचारियों का कहना है कि आठ-दस साल से प्रस्ताव की फाइलें भेजी जा रही है, लेकिन कुछ नहीं हो पा रहा है। वहीं विवि कुलपति का कहना है कि अब बहुत ज्यादा प्रिंटिंग की जरूरत नहीं है। इस कारण मशीनें नहीं मंगवाई जा रही है। विवि के प्रिंटिंग प्रेस में सिर्फ एक कटिंग मशीन चल रही है, बाकी टेडिंग मशीन खराब है। साथ ही आफसेट मशीन की मांग कई सालों से की जा रही है, ताकि उत्तरपुस्तिकाओं को भी तैयार किया जा सके। इसके अलावा स्टाफ ना होने के कारण प्रिंटिंग के कई कार्य बंद पड़ा हुआ है। पहले 36 लोगों का स्टाफ था। अब सिर्फ आठ कर्मचारी बचे हुए हैं। प्रिंटिंग प्रेस ने विवि प्रबंधन को नई आफसेट मशीन मंगवाने के लिए दस से अधिक बार प्रस्ताव भेजा, लेकिन कोई भी प्रस्ताव अब तक मंजूर नहीं हुआ। यही कारण है कि उत्तरपुस्तिकाओं को तैयार कराने का काम बाहर से कराया जाता है। जिसमें विवि प्रशासन एक से डेढ़ करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि अगर विवि के प्रिंटिंग प्रेस से उत्तरपुस्तिका तैयार की जाती तो 60 फीसद राशि बचाई जा सकती थी। प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना को 41 साल हो गए, लेकिन बेहाल है। अब तक कोई बदलाव नहीं हुआ। इसकी स्थापना इसलिए की गई थी, ताकि विवि का रजिस्टर, उत्तरपुस्तिकाएं, अंकसूची, आवेदन फार्म, परीक्षा फार्म आदि को तैयार किया जा सके, लेकिन प्रेस की मशीनें पुरानी होने से विवि बाहर से तैयार कराता है। इस बारे में बीयू के कुलपति प्रो आरजे राव का कहना है कि प्रिंटिंग प्रेस के माध्यम से विवि को बहुत ज्यादा प्रिंटिंग की जरूरत नहीं है। अब विवि का हर कार्य आनलाइन हो गया है। इस कारण उत्तरपुस्तिकाएं बाहर से टेंडर जारी कर तैयार करवाते हैं, इसलिए नई मशीनें नहीं मंगवा रहे हैं।




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