वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी ने सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से खुलकर लोहा लिया था और अंत में भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति देकर बलिदान दे दिया। वीरांगना के पराक्रम का बखान करते हुए विधायक श्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा, वीरांगना ने अपने सीने में तलवार भोंकते वक्त कहा कि ‘‘हमारी दुर्गावती ने जीते जी वैरी के हाथ से अंग न छुए जाने का प्रण लिया था। इसे न भूलना।' उनकी यह बात और शौर्यगान भी भविष्य के लिए अनुकरणीय बनकर भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अलंकृत हो गई। हमें भी क्रांतीवीर के पदचिन्हों पर चलकर राष्ट्र हित, सर्वज्ञ कल्याण और विकास का जनसंकल्प लेना होगा। यही आजादी की चिंगारी, अमर नायिका को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित होगी।
अंग्रेजों की जड़ें हिला दी:---- मंत्री श्री कावरे
प्रदेश के आयुष एवं जल संसाधन मंत्री श्री रामकिशोर “नानो” कावरे ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा, कि 1857 के क्रान्ति काल में सभी देश भक्त राजाओं और जमींदारों ने रानी के साहस और शौर्य की बड़ी सराहना की और उनकी योजनानुसार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। जगह-जगह गुप्त सभाएं कर देश में सर्वत्र क्रान्ति की ज्वाला फैला दी। रानी ने अपने राज्य से कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधिकारियों को भगा दिया और राज्य एवं क्रान्ति की बागडोर अपने हाथों में ले ली। अपने पराक्रम से अपनी छोटी सी सेना के बल पर अंग्रेजों की बड़ी सेना की जड़ें हिला दी। ऐसी देशभक्त वीरांगना के श्री चरणों में शत-शत नमन।
वीरता की एक मिसाल :----रमेश भटेरे
पूर्व विधायक श्री रमेश भटेरे ने प्रेरक प्रसंग में अपनी पुष्पांजलि अर्पित करते हुए कहा कि, वीरांगना अवंतीबाई ने अंग्रेजों से अपने देश की स्वतंत्रता और हक के लिए लड़ी थीं। जब रानी वीरांगना अवंतीबाई अपनी मृत्युशैया पर थीं तो इस वीरांगना ने अंग्रेज अफसर को अपना बयान देते हुए कहा कि ‘‘ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मैंने ही विद्रोह के लिए उकसाया, भड़काया था उनकी प्रजा बिलकुल निर्दोष है।' ऐसा कर वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने हजारों लोगों को फांसी और अंग्रेजों के अमानवीय व्यवहार से बचा लिया। मरते-मरते ऐसा कर वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने अपनी वीरता की एक और मिसाल पेश की।
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