भव्य कलश यात्रा के साथ शुरू हुई सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा
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भव्य कलश यात्रा के साथ शुरू हुई सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा

भव्य कलश यात्रा के साथ शुरू हुई सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा
सांचेत कस्बा सांचेत मां हिंगलाज दरबार मैं दुर्गा मठ पर शुरू हुई सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन बुधवार को भागवत कथा के प्रथम दिन मंदिर शिव मंदिर परिसर प्राचीन वावड़ी से भव्य कलश यात्रा निकाली गई। बैण्ड बाजे के साथ शुरू हुई कलश यात्रा में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे बच्चे, युवती व महिलाओं ने हिस्सा लिया।सुबह के समय कलश के साथ महिला पुरुषों ने बाजे-गाजे के साथ कलश यात्रा निकाली।कलश यात्रा में सबसे आगे भागवत जी को सर पर उठाये पंडित श्री अरुण कुमार जी शास्त्री, गुरु परिवार के सभी सदस्य, गद्दी सेवक और समाज के बंधू चल रहे थे। कलश यात्रा में पीले वस्त्र धारण की हुई कन्याएं व महिलाएं सिर पर कलश धारण किए हुए मंगलगीत गाते हुए चल रही थीं। कलश यात्रा अंडोल रोड होते हुए बाबा कालभैरव मन्दिर शिव मंदिर श्री रामजानकी मंदिर मां खेड़ापति माता मंदिर के विभिन्न मार्गो से निकाली गयी। कलश यात्रा का जगह- जगह स्वागत किया गया।शोभा यात्रा का जगह-जगह लोगो ने पूरी आस्था और गुरूदेव के जयकारे के साथ पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। इस मौके पर शोभा यात्रा पर खुले आकाश से पुष्प वर्षा की गई।कलश यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं के जयकारे से वातावरण गुंजायमान हो गया। राधे-राधे के उद्घोष से माहौल भक्ति के रस में डूब गया। इसके बाद मंत्रोच्चारण के बीच पुरोहितों द्वारा कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की। आचार्य ने विधिविधान पूर्वक पूजन संपन्न कराया,  पंडित अरुण कुमार शास्त्री द्वारा सांचेत ओर आसपास से आये लोगों का सभी भक्तों को अधिक संख्या में उपस्थिति होने हेतु आहवान किया।पंडित कथावचार्य शिवराज कृष्ण शास्त्री के व्यास पीठ पर आसन होने के पश्चात् माल्यापर्ण कर,उपरणा (शाल ) ओढ़ाकर स्वागत किया गया ।माहात्म्य पर बोलते हुए पंडित शिवराज कृष्ण शास्त्री ने कहा कि बिनु परतीती होई नहीं प्रीति अर्थात माहात्म्य ज्ञान के बिना प्रेम चिरंजीव नहीं होता, अस्थायी हो जाता है। धुंधकारी चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आत्मसात कर लेें तो जीवन से सारी उलझने समाप्त हो जाएगी। द्रौपदी, कुन्ती महाभागवत नारी है। कुन्ती स्तुति को विस्तारपूर्वक समझाते हुए परीक्षित जन्म एंव शुकदेव आगमन की कथा सुनाई। अंत में संगीत एवं झांकी ने सबको कृष्ण रंग में सराबोर कर दिया। पश्चात गौकर्ण की कथा सुनाई गई।शास्त्री जी महाराज ने कहा कि भगवान की लीला अपरंपार है। वे अपनी लीलाओं के माध्यम से मनुष्य व देवताओं के धर्मानुसार आचरण करने के लिए प्रेरित करते हैं। श्रीमदभागवत कथा के महत्व को समझाते हुए कहा कि भागवत कथा में जीवन का सार तत्व मौजूद है आवश्यकता है निर्मल मन ओर स्थिर चित्त के साथ कथा श्रवण करने की। भागवत श्रवण से मनुष्य को परमानन्द की प्राप्ति होती है। भागवत श्रवण प्रेतयोनी से मुक्ति मिलती है। चित्त की स्थिरता के साथ ही श्रीमदभागवत कथा सुननी चाहिए। भागवत श्रवण मनुष्य केे सम्पूर्ण कलेश को दूर कर भक्ति की ओर अग्रसर करती है। उन्होंने अच्छे ओर बुरे कर्मो की परिणिति को विस्तार से समझाते हुए आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी ओर गौमाता के पुत्र गोकरण के कर्मो के बारे में विस्तार से वृतांत समझाया ओर धुंधकारी द्वारा एकाग्रता पूर्ण भागवत कथा श्रवण से प्रेतयोनी से मुक्ति बताई तो वही धुंधकारी की माता द्वारा संत प्रसाद का अनादर कर छल.कपट से पुत्र प्राप्ती ओर उसके बुरे परिणाम को समझाया।मनुष्य जब अच्दे कर्मो के लिए आगे बढता है तो सम्पूर्ण सृष्टि की शक्ति समाहित होकर मनुष्य के पीछे लग जाती है ओर हमारे सारे कार्य सफल होते है। ठीक उसी तरह बुरे कर्मो की राह के दौरान सम्पूर्ण बुरी शक्तियॉ हमारे साथ हो जाती है। इस दौरान मनुष्य को निर्णय करना होता कि उसे किस राह पर चलना है। छल ओर छलावा ज्यादा दिन नहीं चलता। छल रूपी खटाई से दुध हमेशा फटेगा। छलछिद्र जब जीवन में आ जाए तो भगवान भी उसे ग्रहण नहीं करते है- निर्मल मन प्रभु स्वीकार्य है। छलछिद्र रहित ओर निर्मल मन भक्ति के लिए जरूरी है।पहले दिन भगवान के विराट रूप का वर्णन किया गया। इसे सुन श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए। भजन, गीत व संगीत पर श्रद्धालु देर तक झूमते रहे।इस अवसर पर मुख्य अतिथि मरघटिया महावीर मंदिर शाहजनावाद भोपाल के महंत श्री कन्हैया दास जी महाराज आये जिससे सांचेत भूमि धन्य हो गई

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