ग्राम अंडोल मैं चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन हुआ ध्रुव चरित्र शिव पार्वती विवाह /कथावाचक पंडित श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला सौजना
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ग्राम अंडोल मैं चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन हुआ ध्रुव चरित्र शिव पार्वती विवाह /कथावाचक पंडित श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला सौजना

ग्राम अंडोल मैं चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन हुआ ध्रुव चरित्र शिव पार्वती विवाह /कथावाचक पंडित श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला सौजना
Editor in Chief Abhishek Malviya 
सांचेत ग्राम अंडोल में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को हुआ ध्रुव चरित्र व शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग श्रीमद् भागवत कथा में तीसरे दिन उमड़ी श्रोताओं की भीड़।
संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा वाचक पं. धर्म शास्त्री श्रीओम प्रकाश जी शुक्ला सोजना वालों ने ध्रुव चरित्र और शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनाई
कथा वाचक पंडित श्री शुक्ला ने कपिल अवतार ध्रुव चरित्र सृष्टि की रचना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, मनुष्य जीवन आदमी को बार-बार नहीं मिलता है इसलिए इस कलयुग में दया धर्म भगवान के स्मरण से ही सारी योनियों को पार करता है। मनुष्य जीवन का महत्व समझते हुए भगवान की भक्ति में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने बताया कि, भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रुप में लिया। उन्होंने बताया कि, किसी भी काम को करने के लिए मन में विश्वास होना चाहिए तो कभी भी जीवन में असफल नहीं होंगे। जीवन को सफल बनाने के लिए कथा श्रवण करने से जन्मों का पाप कट जाता है। ध्रुव चरित्र की कथा के बारे में भक्तों को विस्तार से वर्णन कर बताया। शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग बताते हुए कहा कि, यह पवित्र संस्कार है, लेकिन आधुनिक समय में प्राणी संस्कारों से दूर भाग रहा है। जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है, ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा दयनीय हो गई, सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रुप में जन्म लिया। पार्वती जब बड़ी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय के महल पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया। इसके बाद सारी प्रक्रिया शुरु तो हो गई, लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे। ऐसे में शिव को पार्वती के प्रति अनुरक्त करने कामदेव को उनके पास भेजा गया, लेकिन वे भी शिव को विचलित नहीं कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। इसके बाद वे कैलाश पर्वत चले गए। तीन हजार सालों तक उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की। इसके बाद भगवान शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ। कथा स्थल पर भगवान शिव और माता पार्वती के पात्रों का विवाह कराया गया। विवाह में सारे बाराती बने और खुशिया मनाई। कथा में भूतों की टोली के साथ नाचते-गाते हुए शिवजी बारात आई। बारात का भक्तों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। शिव-पार्वती की सचित्र झांकी सजाई गई। विधि-विधान पूर्वक विवाह सम्पन्न हुआ। महिलाओं ने मंगल गीत गाए ओर विवाह की रस्म पूरी हुई। महाआरती के बाद महाप्रसादी का वितरण किया गया। कथा में तीसरे दिन बड़ी संख्या में महिला-पुरुष कथा श्रवण करने पहुंचे।

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