संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा मैं श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह का आयोजन किया गया
Type Here to Get Search Results !

संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा मैं श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह का आयोजन किया गया

संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा मैं श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह का आयोजन किया गया
Editor Abhishek Malviya 
सांचेत प्राचीन मां हिंगलाज दुर्गा मठ में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत के छठवें दिन सोमवार को कथावाचक पंडित शिवराज कृष्ण शास्त्री द्वारा श्री कृष्ण रुक्मणि विवाह की कथा को सुनाया संगीतमय श्रीमद भागवत कथा में रुक्मिणी विवाह की झांकी ने मोहा मन श्रीकृष्ण रुक्मणी विवाह का आयोजन हुआ, जिसे बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।
कथावाचक पंडित शिवराज कृष्ण शास्त्री ने रास पंच अध्याय का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय है। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण है। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उद्धव गोपी संवाद, उद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना व रुकमणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया। भारी संख्या में भक्तगण दर्शन के लिए शामिल हुए। कथा के दौरान पंडित शिवराज कृष्ण शास्त्री ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया। महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुखमय जीवन बिताया। भगवान श्रीकृष्ण रुकमणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। कथा स्थल पर रुक्मिणी विवाह के आयोजन ने श्रद्घालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। श्रीकृष्ण रुक्मिणी की वरमाला पर जमकर फूलों की बरसात हुई। कथा वाचक ने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है, इसलिए जीव के अंदर अपारशक्ति रहती है। यदि कोई कमी रहती है, वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प व कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे। रुक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर उन्होंने कहा कि रुक्मिणी के भाई रुक्मणि ने उनका विवाह शिशुपाल के साथ सुनिश्चित किया था, लेकिन रुक्मिणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल को नहीं केवल गोपाल को पति के रूप में वरण करेंगे। उन्होंने कहा शिशुपाल असत्य मार्गी है। द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण सत्य मार्गी है। इसलिए वो असत्य को नहीं सत्य को अपनाएंगी। अंत भगवान श्रीद्वारकाधीशजी ने रुक्मणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया। उन्हें पद्यी के रूप में वरण करके प्रधान पटरानी का स्थान दिया।इस अवसर पर कथा के आयोजक पंडित अरुण कुमार शास्त्री ने बताया कि मंगलवार 8 फरवरी को महाप्रसादी वितरण की जाएगी इर कथा में सुदामा चरित्र की कथा का रसपान कराया जाएगा ज्यादा से ज्यादा भक्त गण पहुच जर कथा का आनंद प्राप्त करें।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Bhopal

4/lgrid/Bhopal
----------------NEWS Footer-------------------------------- --------------------------------CSS-------------------------- -----------------------------------------------------------------