
नई दिल्ली| भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह को चुनावी राजनीति का कुशल रणनीतिकार माना जाता है। इसकी वजह चुनावों में लगातार मिल रही जीत ही नहीं है बल्कि उन्हें मतदाताओं के साथ-साथ नेताओं और कार्यकतार्ओं की परख करने का भी माहिर खिलाड़ी माना जाता है। यही वजह है कि अमित शाह के चुनावी कमान संभालने के बाद से ही विरोधियों के साथ-साथ पार्टी के कई नेताओं की भी नींद उड़ जाती है। उत्तर प्रदेश के लगातार दौरे कर रहे अमित शाह की ' रात्रि बैठकों ' ने एक बार फिर से प्रदेश में उसी तरह का माहौल बना दिया है।
दरअसल , शाह दिन भर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में चुनावी रैलियां करने के बाद एक क्षेत्र विशेष का चयन कर वहीं रात्रि विश्राम कर पार्टी नेताओं के साथ बैठक करते हैं। भाजपा नेता आपसी बातचीत में इसे शाह की ' रात्रि बैठक ' कह कर संबोधित करते हैं। दरअसल , अमित शाह के चुनावी अभियान का यह सबसे महत्वपूर्ण एजेंडा होता है। इन ' रात्रि बैठकों ' में अमित शाह विधान सभा प्रभारियों के साथ सीधा संवाद कर कई मामलों में फीडबैक लेते हैं। विधान सभा अनुसार चुनावी मुद्दे, चुनावी जीत के लिए जरूरी जातीय समीकरण सहित क्षेत्र विशेष के हर तरह के समीकरण को लेकर चर्चा करते हैं । इस चर्चा से मिले फीडबैक के आधार पर शाह भविष्य की रणनीति तैयार कर कार्यकतार्ओं और नेताओं को जरूरी निर्देश देते हैं। शाह की यह रणनीति अब तक कितनी कामयाब रही है, इसका अंदाजा 2014 और 2019 के लोक सभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से लगाया जा सकता है। इसलिए शाह की इन बैठकों से विरोधी दलों की नींद उड़ जाती है।
इस बार भी अमित शाह की इन रात्रि बैठकों की वजह से विरोधियों के साथ-साथ भाजपा नेताओं की नींद भी उड़ गई है। खासकर वर्तमान विधायकों की, क्योंकि इन बैठकों में शाह वर्तमान विधायकों के कामकाज और छवि को लेकर भी जमीनी फीडबैक लेते हैं और टिकट बंटवारे के समय ये फीडबैक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
2019 के लोक सभा चुनाव में इसी तरह के फीडबैक के आधार पर कई सिटिंग सांसदों का टिकट काटा गया था। इसलिए शाह की इन बैठकों से भाजपा के ऐसे विधायकों की नींद उड़ी हुई है जो क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे हैं, जिन्होने सरकार की योजनाओं का ज्यादा से ज्यादा लाभ लोगों तक पहुंचाने में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई है और संगठन के साथ बेहतर तालमेल स्थापित कर क्षेत्र में बेहतर काम नहीं किया है।
हालांकि टिकट कटने का कारण हर बार निष्क्रियता, अलोकप्रियता या मतदाताओं में उम्मीदवार विशेष को लेकर नाराजगी मात्र ही नहीं होती है। भाजपा के एक बड़े नेता ने बताया कि कई बार क्षेत्र विशेष के समीकरण या चुनावी मुद्दे बदल जाने का असर भी इस पर पड़ता है। 2019 के लोक सभा चुनाव में भी पार्टी ने अपने कई लोकप्रिय सांसदों का टिकट काट कर अन्य दलों से आने वाले नेताओं और अपनी ही पार्टी के दूसरे नेताओं को उम्मीदवार बना कर चुनावी जीत हासिल की थी। इसलिए पार्टी ने टिकट कटने वाले अपने कई सांसदों को बाद में अलग-अलग भूमिका में एडजस्ट किया और उनमें से कुछ को इस बार के विधान सभा चुनाव में टिकट भी देने जा रही है।

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