नरसिंहपुर- जिस बचपन में हाथों में खिलोने होने चाहिए उन हाथों में भीख का कटोरा हाथ में देख सवाल उठता है ये भी हमारे जिले का भविष्य है,फिर भी इनकी हालत की ओर कोई ध्यान क्यों नही दिया जा रहा है।
जब कोई मासूम आपसे सवाल करता है भैया लोग हमने दुत्कारते क्यों है क्या हम लोग गरीब भिखारी हैं इसलिए?
तब अंतरद्वंद अनेकों सवालों को जन्म देता है और सबसे पहला सवाल होता है क्या मानवीय संवेदनाएं समाज से समाप्त होती जा रही है।क्या इन्हे जिले का भविष्य मानने से ही इंकार कर दिया गया है? सरकार अनेकों योजनाएं संचालित कर रही है किंतु शिक्षा से पहले पेट की भूख की चिंता स्कूल की दहलीज पर ही रोक देती है।इनके लिए शासकीय योजनाएं सिर्फ कागजी बातें बनकर रह गई है। सड़कों पर दौड़ते नंगे पैर,फटेहाल लेकिन चेहरे पर मासूम मुस्कान जो बरबस ही किसी भी इंसान का मन मोह लेती है।आखिर बच्चे ही तो हैं,मासूमियत और जिद कभी गलतियां कर भी देती हैं जिसके एवज में गंदी गलियों और बेहूदा हरकतों से ऐसे बच्चों का उपहास उड़ाया जाना मारपीट करना क्या जायज ठहराया जा सकता है।
जब किसी गरीब भिखारिन बच्ची की आस्तीन फटी हुई होती है जिसे छिपाने और भीख मांगने की जद्दो जहद में वो कभी कभी दोनो ही में नाकाम होती है और तब समाज के अंदर इंसानियत की खाल में छुपे हैवानों की गंदी नजर से वह बच नही पाती है।आखिर यह घिनौना चेहरा किसका है? क्या भिखारी इंसान नही ?क्या उन्हे जीने का सुविधाओं का अधिकार नहीं?क्यों उन्हे इतने निचले दृष्टिकोण से देखा जाता है कि उनके उत्थान और विकास की बातें महज बातें बनकर रह जाती हैं।अगर अशिक्षा के चलते ये योजनाओं तक नहीं पहुंच सकते तो क्या समाज का प्रबुद्ध वर्ग आगे आकर इन तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचा सकता है।
नरसिंहपुर जिले से राजकुमार दुबे की खास रिपोर्ट
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