मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद तीसरे दिन भी स्थिति साफ नहीं है। इस मामले में अब पहली बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एंट्री हो रही है। उन्होंने सोमवार शाम को हाई लेवल बैठक बुलाई है। इसमें मप्र के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह, विधि विभाग के प्रमुख सचिव गोपाल श्रीवास्तव के अलावा गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा और नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह मौजूद रहेंगे। इस बैठक में कानूनी सलाह लेकर ही फैसला किया जाएगा कि आयोग को सरकार की तरफ से क्या जवाब भेजा जाना है?

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी के लिए रिजर्व जिला पंचायत सदस्य, जनपद, सरपंच व पंच के पदों के निर्वाचन की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही पंचायत विभाग ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के आरक्षण पद के लिए आरक्षण प्रक्रिया पर भी राज्य शासन ने रोक लगा दी थी। इसके बाद 18 दिसंबर को आयोग ने सरकार को कोर्ट की प्रति भेजकर 7 दिन में आरक्षण की प्रक्रिया कर जानकारी देने के लिए पत्र भेजा था।

उमा भारती ने किया शिवराज को फोन

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने इस मसले पर आज (सोमवार) सुबह ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से फोन पर बात की। उन्होंने यह जानकारी सोशल मीडिया पर दी। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण पर लगी न्यायिक रोक चिंता का विषय है। उन्होंने लिखा- मेरी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से फोन पर बात हुई है। मैंने उनसे आग्रह किया है कि ओबीसी आरक्षण के बिना मध्य प्रदेश में पंचायत का चुनाव मध्यप्रदेश की लगभग 70% आबादी के साथ अन्याय होगा।

गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सोमवार को कहा कि कांग्रेस ओबीसी आरक्षण को खत्म करना चाहती है। कांग्रेस के प्रवक्ताओं का कोर्ट में याचिका लगाना और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा का पैरवी करना, यह साबित करता है। उन्होंने कहा कि सरकार और बीजेपी की मंशा इस वर्ग को 27% आरक्षण देने की है।

वर्तमान में प्रदेश की पंचायतों में औसतन 60% सीटें रिजर्व

आयोग के सूत्रों ने बताया कि फिलहाल यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि पंचायतों में रिजर्व सीटों का प्रतिशत कितना है? दरअसल, पंचायत में आरक्षण उस क्षेत्र की आबादी के हिसाब से होता है। बतौर उदाहरण- झाबुआ में ओबीसी की आबादी बहुत कम है, इसलिए यहां की पंचायतों में इस वर्ग के लिए बहुत कम सीटें रिजर्व होंगी। यानी यहां सामान्य सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। अनुमान के मुताबिक प्रदेश की पंचायतों में औसतन 15% सीटें एससी, 20% सीटें एसटी और 25% सीटें ओबीसी के लिए रिजर्व हैं। इस तरह 60% सीटें रिजर्व हैं, जो 50% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

आरक्षण में करना होगा ट्रिपल टेस्ट का पालन

सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना आरक्षण के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से कहा कि कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाए। OBC के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करे। अदालत ने कहा कि कानून का पालन नहीं होगा, तो चुनाव रद्द किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी को करेगा।

आयोग के सामने क्या है संकट

निर्वाचन आयोग के सामने संकट यह है कि भले ही ओबीसी सीटों पर निर्वाचन प्रक्रिया पर रोक लगा दी है, लेकिन सभी सीटों का रिजल्ट एक साथ घोषित कराना है। यह निर्देश आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं। अब सरकार नए सिरे से आरक्षण करती है, तो इसमें वक्त लगेगा। ऐसे में जिन सीटों में बदलाव होगा, वहां मतदान समय पर हो पाना संभव नहीं लगता। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि सरकार ओबीसी सीटों के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य घोषित कर अधिसूचना जारी करे। संभवत: आज-कल में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग अधिसूचना जारी कर देगा।