देश की बात फाउंडेशन ने किया नगर में"रोजगार संवाद" आयोजित
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देश की बात फाउंडेशन ने किया नगर में"रोजगार संवाद" आयोजित

समाचार
19-12-2021

खबरों में हमारा श संवाददाता राजू बैरागी


रोजगार संवाद की शुरुआत देश की बात फॉउंडेशन के क्षेत्रीय सह समन्वयक एडव्होकेट प्रवीण सक्सेना ने वर्तमान में राष्ट्रीय रोजगार नीति बनाए जाने हेतु फाउंडेशन के प्रयासों व बनाए गए ड्राफ्ट को प्रस्तुत कर शुरू की।कार्यक्रम में विशेष अतिथियों में वरिष्ठ नागरिक फिदा हुसैन ,सेवानिवृत्त बी ई ओ नरेंद्र शुक्ला, वरिष्ठ एडवोकेट दामोदर उदावत, स्थानीय साहित्यकार एवं यूएन में प्रतिनिधि रहे बल्लभ किशोर शर्मा एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेश भार्गव एडवोकेट ने की।रोजगार संवाद में चर्चा एवं सुझाव के लिए सकारात्मक राष्ट्रवाद की समान विचारधारा वाले लगभग 35 से अधिक प्रतिनिधि विभिन्न  छात्र संगठन, युवा संगठन, अध्यापक संगठन, महिला संगठन, श्रमिक संगठन, किसान संगठन, व्यापारी संगठन, N.G.O.. एवं अन्य संगठनो के प्रतिनिधियों ने विचार व्यक्त कर कहा रोजगार नीति आज देश के युवाओं के लिये आवश्यक एवं अपरिहार्य है। प्रतिनिधियों ने एक मत में कहा कि देश बेरोज़गारी के भयावह संकट से जूझ रहा है । 
बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर भी युवा आज काम के लिए दर-दर भटक रहे हैं । रोज़गार का नया सृजन करना तो दूर देश भर में लाखों खाली पड़ी सरकारी वेकैंसी पर भर्ती नहीं की जा रही है, जहां भर्ती हो भी रही है, ठेकेदारी व्यवस्था के तहत हो रही है, जिससे काम करने के बावजूद भी लोगों को सम्मानपूर्वक जीवन जीना मुश्किल हो रहा है । प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार के नए अवसर पैदा होने की जगह छटनी की तलवार लोगों के सर मंडरा रही है । बेरोज़गारी की समस्या के समाधान के लिए भारत में आज़ादी के बाद जिस तरह की नीतियां बनाने की ज़रूरत थी, अब तक की सरकारों ने वैसी नीतियां नहीं बनाई । यही वजह है कि आज़ादी के सात दशक से ज्यादा वक्त गुज़र


जाने के बाद भी हमारे देश में 'राष्ट्रीय रोज़गार नीति' नहीं बन पाई है । पहले से ही बेरोज़गारी की मार झेल रही हमारी अर्थव्यवस्था को कोरोना ने और अधिक बुरी स्थिति में पहुंचा दिया। आज बेरोज़गारी की समस्या ना सिर्फ़ गांव के लोगो की है बल्कि जो लोग बड़े-बड़े शहरों में रहते हैं, उनकी भी समस्या है । देश की बात फाउंडेशन’ एक वैचारिक संगठन है और ‘सकारात्मक राष्ट्रवाद’ की विचारधारा के आधार पर राष्ट्र-निर्माण के लिए काम कर रहा है, सकारात्मक राष्ट्रवाद का मानना है, बेरोज़गारी की समस्या का समाधान - ‘राष्ट्रीय रोज़गार नीति’ है । ‘सकारात्मक राष्ट्रवाद’ के अनुसार रोज़गार सिर्फ़ आर्थिक विषय नहीं है, बल्कि राष्ट्र-निर्माण में सबकी हिस्सेदारी का भी विषय है। रोज़गार के कारण भौतिक जरूरतें जैसे रोटी, कपड़ा, मकान की जरूरत पूरी होती है आम तौर पर देश और दुनिया में एक परंपरा रही है, लोग समस्या से उपजे संकट का विरोध तो करते हैं, किंतु समाधान के लिए काम नहीं करते,देश की बात फाउंडेशन ने बेरोज़गारी की समस्या का समाधान करने के लिए देश के सामने 'राष्ट्रीय रोज़गार नीति' प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । अगर सरकार समाधान नहीं निकाल रही है तो देश के लोगों को, जो इस देश से  प्रेम करते हैं, उन्हें आगे बढ़ कर समाधान निकालने की पहल करनी होगी । ‘राष्ट्रीय रोज़गार नीति’ राष्ट्र-निर्माण करने का दस्तावेज है ।
देश की बात फाउंडेशन द्वारा देश के सभी राज्यों के अलग-अलग शहरों में 'रोज़गार संवाद' का आयोजन किया जा रहा है।
कार्यक्रम में वक्ता के रूप में सामाजिक कार्यकर्ता जुनेद गोरी, मन्युल सक्सेना, पंकज शिवहरे, सामाजिक कार्यकर्ता रश्मि भार्गव, दिलीप कुशवाह, मनोज महावर, रचित सक्सेना, नरेंद्र वाला एडवोकेट, देवराज सोलंकी, नितेश कटारिया पत्रकार, कैलाश शर्मा, सत्यनारायण शिवहरे, रिधी सक्सेना, गोरधन तंवर, कैलाश चंद्र प्रजापति एडवोकेट, प्रभु लाल जी बैरागी, अनुरिमा भार्गव ने अपने सुझाव रखे, कार्यक्रम का संचालन पंकज कौशिक एवं आभार प्रदर्शन दौलत राम विजयपुरिया द्वारा किया गया।

 

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