भोपाल : भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठापूर्ण महोत्सव "तानसेन समारोह'' की शनिवार की सुबह पारंपरिक ढंग से शुरुआत हुई। यहाँ हजीरा स्थित तानसेन समाधि-स्थल पर शहनाई वादन, हरिकथा, मिलाद, चादरपोशी और कव्वाली गायन हुआ। सुर सम्राट तानसेन की स्मृति में पिछले 96वर्ष से आयोजित हो रहे इस समारोह में देश और दुनिया के ब्रह्मानाद के शीर्षस्थ साधक तानसेन समाधि परिसर से गान मनीषी तानसेन को स्वरांजलि अर्पित करने आए हैं।

तानसेन समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से रविवार की प्रातःबेला में उस्ताद मजीद खाँ एवं साथियों ने रागमय शहनाई वादन किया। इसके बाद ढोलीबुआ महाराज नाथपंथी संत श्री सच्चिदानंद नाथ जी ने संगीतमय आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए ईश्वर और मनुष्य के रिश्तों को उजागर किया। उनके प्रवचन का सार था कि परहित से बढ़कर कोई धर्म नहीं। अल्लाह, ईश्वर, राम-रहीम, कृष्ण-करीम, खुदा और देव सब एक हैं। हर मनुष्य में ईश्वर विद्यमान है। हम सब ईश्वर की सन्तान है तथा ईश्वर के अंश भी हैं। उन्होंने कहा कि रोजा और व्रत, मुल्ला और पण्डित, ख्वाजा और आचार्य के उद्देश्य और मत एक ही है कि सभी नेकी के मार्ग पर चलें। ढोली बुआ महाराज द्वारा राग "मिश्र खमाज" में प्रस्तुत भजन के बोल थे "भज भज राधे गोविंदा" । उन्होंने प्रिय भजन "रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम" का गायन भी किया।

ढोलीबुआ महाराज की हरिकथा के बाद मुस्लिम समुदाय से मौलाना इकबाल लश्कर कादिरी ने इस्लामी कायदे के अनुसार मिलाद शरीफ की तकरीर सुनाई। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी भक्ति मोहब्बत है। अंत में हजरत मौहम्मद गौस और तानसेन की मजार पर राज्य सरकार की ओर से सैयद जियाउल हसन सज्जादा नसीन द्वारा परंपरागत ढंग से चादरपोशी की गई। इससे पहले जनाब फरीद खानूनी, जनाब भोलू झनकार,जनाब आरिफ अली, जनाब अल्लाह रक्खा एवं उनके साथी कव्वाली गाते हुए चादर लेकर पहुँचे।

तानसेन समाधि पर परंपरागत ढंग से आयोजित हुए इस कार्यक्रम में उस्ताद अलाउद्दीन खाँ कला एवं संगीत अकादमी के निदेशक श्री जयंत भिसे, सहित कलारसिक, गण-मान्य नागरिक और मीडिया प्रतिनिधि उपस्थित थे।