भोपाल । प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर घमासान मचा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण खत्म करने का फैसला देेने के बाद सरकार अब फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है। हालांकि इतना तय है कि सरकार दृढ़ इच्छाशक्ति ओबीसी आरक्षण को आगे ले जाती है तो 27 फीसदी आरक्षण दिला सकती है। क्योंकि जिस इंदिरा साहनी जजमेंट को आधार बनाकर आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा करने पर रोक लगाई जाती है, उसी केस में संविधान पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस रेड्डी के जजमेंट के आधार पर तमिलनाडु सरकार ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिला सकती है।
इंदिरा साहनी केस में ही जस्टिस रेड्डी ने अपने जजमेंट में लिखा था कि विशेष परिस्थितियों में राज्य चाहे तो 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे सकती है। इसी के आधार पर तमिलनाडु में ओबीसी को विशेष पिछड़ी एवं अति विशेष पिछड़ी जातियों में विभाजित करके  2,6,9 एवं 11 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। इसी आधार एवं रोहिणी कमीशन द्वारा संसद में पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर सरकार ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिला सकती है। रोहिणी कमीशन में बताया है कि ओबीसी में शामिल कई जातियां बेहद पिछड़ी हैं। जिनका विस, लोक एवं सरकार में प्रतिनिधित्व न के बराबर है।
ओबीसी विधेयक को 9 वीं अनुसूची में डलवाए सरकार
ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ आनंद राय ने बताया कि सरकार ने ओबीसी को लेकर जो विधायक विधासभा में पारित किया था। उसे लेकर राज्य एवं केंद्र सरकार राष्ट्रपति के पास जाए और विधेयक को संविधान की 9 वीं अनुसूची में डलवाए। जाकि वह समीक्षा से बाहर आए। 9 वीं अनुसूची में आने के बाद समीक्षा तभी होती है, जब मौलिक अधिकारों का हनन हो। ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने से किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होगा।
महाराष्ट्र के 6 जिलों के लिए है सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र निकायों को लेकर दिए गए फैसलों को मप्र पंचायत चुनाव में लागू करने का आदेश दिया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला महाराष्ट्र के 6 जिलों को लेकर था। उन जिलों में ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से काफी कम है। जबकि मप्र में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है।