जुगाड़ के पुल से छात्र छात्राओं सहित ग्रामीणों की जान जोखिम में
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जुगाड़ के पुल से छात्र छात्राओं सहित ग्रामीणों की जान जोखिम में

 




  • रेलवे की दो पटरियों पर टिकी है सैंकड़ों ग्रामीण की जान
  • 30वर्ष से 3 गांव के हज़ारों लोग पुल बनने का कर रहे हैं इंतज़ार

अदनान खान सलामतपुर रायसेन। 

मध्यप्रदेश सरकार ने पूरे प्रदेश में 1 सितंबर से मिडिल स्कूल व 20 सितंबर से प्राइमरी स्कूल विद्यार्थियों के लिए खोल दिए हैं। और इसके अलावा छात्रावास भी पचास प्रतिषत क्षमता के साथ खोल दिए गए हैं। स्कूलों में प्राइमरी से लेकर हायर सेकेंडरी तक की कक्षाओं का संचालन भी शुरू हो गया है। लेकिन स्कूल जाने के लिये छात्र-छात्राओं सहित ग्रामीणों को प्रतिदिन अपनी जान जोखिम में डालकर दो रेलवे की पटरियों के सहारे नदी पार करना पड़ रही है। जी हां हम आपको एक ऐसी ही तस्वीर दिखाते हैं जहां विकास के दावे और तरक्की के सारे वादे खत्म होते दिखाई देते हैं। हम खबरों में सुनते हैं संवाद का पुल टूट गया। खैर यहां तो पुल बना ही नहीं है। मामला है रायसेन जिले के सांची विकासखंड के ग्राम पंचायत गीदगढ़ का। जहां नदी पार करने के लिए छात्र-छात्राओं और हज़ारों ग्रामीणों को नदी पर रेलवे लाइन की दो पटरिया रखकर इस नदी को पार करना पड़ता है। अगर जरा सी भी चूक हुई या नजर झुकी तो कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। और कई बार तो हादसा हो भी चुका है। पिछले वर्ष ही एक वृद्ध महिला की यहां से गिरकर मौत हो चुकी ही। मगर उसके बाद भी प्रशासन मूकदर्शक बने बैठा है। जुगाड़ का पुल गांव वालों ने ही बनाया है और 3 गांव के लोग 30 वर्षों से रोज यहां से अपनी ज़िंदगी को दांव पर लगाकर सफर तय करके दूसरी तरफ जाते हैं। यहां से छोटे व बड़े स्कूल के बच्चे को भी प्रतिदिन जोखिम भरा सफर तय करना पड़ता हैं। बच्चों का कहना है कि डर तो लगता है मगर हमें पढ़ना है कुछ बनना है। इसलियें हम इस जुगाड़ के पुल से जान जोखिम में डालकर निकलते हैं। एक तरफ तो सरकार ने प्राइमरी कक्षा से लेकर 12वीं कक्षाओं के लिए स्कूल, छात्रावास खोल दिए हैं। और इसके अलावा 1 सितंबर से स्कूलों में कक्षाओं का संचालन भी शुरू हो गया है। सरकार स्कूल चलें हम अभियान भी चलाती है। उस पर करोड़ों रुपये खर्च भी करती है। मगर स्कूल तक कैसे चलें उस रास्ते की तरफ ध्यान नहीं देती है। जब देश में चुनाव होते हैं तो सभी राजनीतिक पार्टियां बड़े-बड़े वादे करती हैं। विकास के दावे करती है। मगर चुनाव होते ही यह उन भोली भाली जनता को भूल जाते हैं। जिन्होंने इन्हें उस कुर्सी पर बैठाया है। जहां से यह देश का विकास कर सकें। अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन इन ग्रामीणों की कब सुध लेता है कब तक इनको नदी पर पुल मिल पाता है।


तीस वर्षों में भी नही हो पाया पुल निर्माण--सांची जनपद की ग्राम पंचायत गीदगढ़ में तीस वर्षों के बाद भी एक पुल का निर्माण नही हो पाया है। बच्चों और ग्रामीणों को जुगाड़ के पुल(दो पटरियों) और एक मोटे तार के सहारे अपनी जान जोखिम में डालकर नदी को पार करना पड़ता है। कई सरकार आईं और गईं लेकिन किसी ने भी इस नदी पर पुल बनवाने का प्रयास नही किया। स्थानीय ग्रामीण भी शासन-प्रशासन से कई बार शिकायतें और निवेदन कर-करके थक चुके हैं। नई सरकार से यहां के ग्रामीणों को कुछ उम्मीद थी कि शायद अब नदी पर पुल का निर्माण हो जाए। यहां यह बात गौर करने लायक है कि गीदगढ़ गांव मध्यप्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी के विधानसभा क्षेत्र में आता है। फिर भी स्कूल जाने के लियें छात्र-छात्राओं को प्रतिदिन अपनी जान को जोखिम में डालकर इस जुगाड़ के पुल से होकर गुजरना पड़ेगा। स्कूली बच्चों ने स्वास्थ्य मंत्री से मांग करी है कि शीघ्र ही नदी पर पुल का निर्माण करा दें। जिससे हमें स्कूल जाने में अपनी जान जोखिम में ना डालना पड़े।


3 साल से रास्ता खुलवाने की सज़ा भुगत रहा है सरपंच प्रतिनिधि:- सांची जनपद की ग्राम पंचायत गीदगढ़ के सरपंच प्रतिनिधि वृंदावन शर्मा ने 3 वर्ष पहले नदी पर दो लोहे के खंबे रखवा दिए थे। जिससे तीन गांव के सैकड़ों लोग निकलने लगे थे। लेकिन पुल के दोनों और निजी ज़मीन है। और इनके मालिक अपनी ज़मीन दे नही रहे हैं। और तो और ज़मीन के मालिक बद्रीप्रसाद धाकड़ ने उन पर केस कर दिया। जो रायसेन न्यायालय में चल रहा है। ग्राम पंचायत सरपंच निर्मला शर्मा के पति वृंदावन शर्मा उनका पुत्र अंकित शर्मा, सहित गांव के मंगल सिंह, जगदीश व रोहित भी इस मामले में 3 सालों से रायसेन न्यायालय में पेशियां कर रहे हैं। वहीं सरपंच पुत्र अंकित शर्मा भी 3 साल से रास्ता खुलवाने की बहुत बड़ी सज़ा भुगत रहा है। क्योंकि उस पर केस हो जाने की वजह से वह नोकरी भी नही कर पाया। 


इनका कहना है----

पुल के दोनों और निजी ज़मीन है। और गांव में जाने के लिए कोई सरकारी सरकारी जगह नहीं है। इसलिए पुल का काम रुका हुआ है। जिसकी वजह से पुल का निर्माण नही हो पा रहा है। मेने 3 साल पहले रास्ता खुलवाकर नदी पर लोहे के 2 खंबे रखवा दिए थे। तो निजी ज़मीन मालिक बद्रीप्रसाद ने मेरे ऊपर केस कर दिया। जिसकी पेशियां में 3 साल से अभी तक कर रहा हूं।

वृंदावन शर्मा, सरपंच प्रतिनिधि गीदगढ़


मुझे गांव से स्कूल जाने के लिए प्रतिदिन नदी पर रखी दो रेलवे पटरियों के सहारे उस तरफ जाना पड़ता है। पटरियों से निकलते समय डर तो लगता है। लेकिन मुझे पड़ना है। इसलिए अपनी जान जोखिम में डालकर यहां से निकलती हूं।

सिमरन, छात्रा


गांव के रास्ते को लेकर बहुत बड़ी समस्या है। यहां आने-जाने के लिए ना ही पुल है और ना ही सड़क है। स्कूली बच्चे और ग्रामीण प्रतिदिन अपनी जान जोखिम में डालकर जुगाड़ के पुल (दो पटरियों) से निकलते हैं। जिससे यहां आए दिन हादसे होते रहते हैं। शासन-प्रशासन से कई बार शिकायत करी है। लेकिन अभी तक पुल निर्माण के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

वीरेंद्र सिंह, स्थानीय ग्रामीण


चार गांव के सैंकड़ों ग्रामीण जिनमें गीदगढ़ टोला, प्रेमपुरा और सीलन गांव आते हैं। उनको इस जुगाड़ के पुल से निकलना पड़ता है। अभी कुछ समय पूर्व ही एक वृद्ध महिला यहां से गिरकर अपनी जान गवां चुकी है। फिर भी प्रशासन इस और ध्यान नही दे रहा है। ऐसा लगता है कि प्रशासन कोई और बड़े हादसे के इंतजार में बैठा है। अगर शीघ्र ही इस समस्या का समाधान नही होता है तो हम ग्रामीण आंदोलन करने के लियें मजबूर हो जाएंगे।

सौरभ शर्मा, स्थानीय ग्रामीण



    

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