लखनऊ । आप सांसद संजय सिंह ने लखनऊ में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की। इस मुलाकात के साथ ही यूपी के सियासी गलियारों में आरएलडी के बाद आम आदमी पार्टी के साथ सपा के गठबंधन की सम्भावनाओं को लेकर चर्चा तेज हो गई है। लखनऊ स्थित लोहिया ट्रस्ट के दफ्तर में हुई इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं के बीच करीब एक घंटे तक बातचीत हुई। गौरतलब है कि मिशन-2022 की तैयारियों जुटे अखिलेश यादव इस बार बड़ी पार्टियों की जगह छोटे दलों से गठबंधन पर जोर दे रहे हैं। कल ही राष्ट्रीय लोकदल को 36 सीटें देकर उन्होंने गठबंधन फाइनल किया है। इसके अलावा पूर्वांचल ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा से सपा का गठबंधन हो चुका है। आम आदमी पार्टी के यूपी प्रभारी संजय सिंह हाल में सपा के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन समारोह में भी शामिल हुए थे। वहां भी अखिलेश यादव से उनकी मुलाकात हुई थी। दो महीने पहले भी संजय सिंह की अखिलेश यादव से मुलाकात हुई थी। आज तीसरी बार दोनों नेता मिले। दोनों के बीच करीब एक घंटे तक बातचीत चली। सूत्रों के अनुसार सपा और आप के बीच गठबंधन पर बातचीत चल रही है। यह मुलाकात उसी क्रम में थी। हालांकि दोनों के बीच सीटों के बंटवारे का फार्मूला अभी तक तय नहीं हुआ है। दोनों पार्टियों में हुए समझौते के मुताबिक सपा रालोद को विधानसभा की करीब 36 सीटें देगी। इनमें से जयंत 30 सीटों पर रालोद और छह सीटों पर सपा के सिंबल पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे। रालोद से गठबंधन से पहले अखिलेश ने केशव देव मौर्य के महान दल, डा.संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया है। ओमप्रकाश राजभर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ थे। ओमप्रकाश राजभर गाजीपुर के हैं और आसपास के जिलों में राजभर जाति का अच्छा वोट बैंक है। जाहिर है, छोटे दलों से गठबंधन के पीछे अखिलेश की जातीय समीकरणों को साधने की रणनीति है जिसकी सफलता की कसौटी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम होंगे। जहां तक रालोद का सवाल है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर उसका प्रभाव है। रालोद से दोस्ती कर अखिलेश की मंशा पश्चिम की जाट बेल्ट में स्थिति मजबूत करने की है। समाजवादी पार्टी और रालोद के बीच पहला गठबंधन लोकसभा चुनाव वर्ष 2019 में हुआ। वैसे तो इस चुनाव में मुख्य गठबंधन सपा और बसपा के बीच हुआ, लेकिन अखिलेश ने अपने कोटे की तीन सीटें बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा रालोद को देकर इसकी शुरुआत की। लोकसभा चुनाव में करारी हार और बसपा से गठबंधन तोड़ने के बाद भी अखिलेश ने रालोद का साथ नहीं छोड़ा।