भोपाल । खंडवा लोकसभा में हुए मतदान के बाद भाजपा और कांग्रेस भले ही जीत के दावे कर रही है, लेकिन पिछली बार से कम हुए मतदान से दोनों ही दल के नेता अंदर ही अंदर चिंतित हैँ और कयास लगाए जा रहे हैं कि कम हुआ मतदान किस पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित होगा। इस बार कुल मतदान 63.88 प्रतिशत पर पहुंच गया है,जिसमें सबसे ज्यदा मतदान नेपानगर सीट पर हुआ है। 2019 के चुनाव में यही मतदान 76.80 प्रतिशत पर पहुंच गया था, यानि पिछली बार से करीब 13 प्रतिशत मतदान कम हुआ है। तीनों विधानसभा के साथ-साथ खंडव लोकसभा दोनों ही पार्टियों के लिनए अहम है। प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से छिंदवाड़ा की सीट छोड़ दी जाए तो 28 सीटों पर भाजपा का कब्जा है और भाजपा इस कब्जे को बरकरार रखना चाहती है। यही कारण रहा कि भजपा ने इस सीट पर दिग्गजों की फौज उतारी तो कांग्रेस ने भी उसका काउंटर करने के लिए अपने पूर्व मंत्रियों केा स्टार प्रचारक बताकर मैदान में उतारा। अब दोनों ही दल जीत का गणित लगा रहे हैं। भाजपा को विश्वास है कि उसकी परंपरागत सीट उसके हाथ से कहीं नहीं जाएगी। खंडवा के अंतर्गत आने वाली आठों विधानसभा में कल जिस तरह से मतदान हुआ है, उससे भाजपा के नेता ऊपरी तौर पर जीत के प्रति आशान्वित दिखाई देरहे हैं, लेकिन अंदर ही अंदर मतदान का प्रतिशत कम होने के कारण चिंता की लकीरें चेहरे पर दिखाई दे रही हैं। पिछली बार से यहां 13 प्रतिशत मतदान कम हुआ जो बतारहा है कि इस बार मतदाताओं को मतदान में रूचि नहीं थी। कांग्रेस इस कम हुए मतदान को अपने पक्ष में देख रही है। उसका मानना है कि यह मतदान कांग्रेस के पक्ष में ही गया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि जिस तरहे से ऐनवक्त पर सचिन बिरला को भाजपा में लिया गया और विकास पर बात नहीं हुई, उससे नाराज होकर भाजपा के ही मतदाताओं ने मतदान नहीं किया है। इससे उन्हें फायदा हो सकता है। पूरी सीट पर सबसे ज्यादा मतदान नेपानगर में 69.72 तो सबसे कम खंडवा में 54.39 प्रतिशत हुआ।