
नई दिल्ली । हौसले बुलंद हों तो शुरुआती असफलताओं के बावजूद इंसान अपनी मंजिल ढूंढ ही लेता है। भारतीय मूल की सिरीषा बांदला इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं। दरअसल, सिरीषा बचपन से ही चांद-तारों की दुनिया में सैर करने के सपने देखती थीं। हालांकि, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा से जुड़ने का उनका सपना चिकित्सकीय आधार पर टूट गया। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। खगोल विज्ञान की बेहतरीन समझ के बलबूते वह न सिर्फ बेहद कम उम्र में शीर्ष निजी अंतरिक्ष कंपनियों में ऊंचा ओहदा हासिल करने में कामयाब रहीं, बल्कि जुलाई 2021 में स्पेस यात्रा की ख्वाहिश भी पूरी कर ली। सिरीषा 11 जुलाई की रात कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद अंतरिक्ष की सैर करने वाली तीसरी भारतवंशी महिला बन गईं। सुनीता के खाते में तो स्पेस में सात बार चहकदमी करने की उपलब्धि भी दर्ज है। वहीं, भारतीय वायुसेना से जुड़े रह चुके राकेश शर्मा अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले एकमात्र भारतीय नागरिक हैं। अंतरिक्ष यात्रा के दौरान सिरीषा ने धरती से 89.9 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरी थी। हालांकि, वह ‘यूनिटी-22’ के चालक दल का हिस्सा नहीं थीं, क्योंकि यह स्वप्रक्षेपण प्रणाली से संचालित यान था। इस कारण संघीय उड्डयन प्राधिकरण ने उन्हें ‘अंतरिक्ष यात्री’ के बजाय ‘अंतरिक्ष पर्यटक’ की श्रेणी में शुमार किया है। ‘वर्जिन गैलेक्टिक’ में शोध संचालन और सरकारी मामलों की उपाध्यक्ष सिरीषा ने कंपनी के संस्थापक सर रिचर्ड ब्रैंसन, डेव मैके, माइकल मासुकी, बेथ मोजेस और कॉलिन बेनेट के साथ अंतरिक्ष यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के लिए एक शोध किया था, जिसका मकसद पौधों पर बदलते गुरुत्वाकर्षण का असर आंकना था।

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