
नई दिल्ली । साल 1984 से भूटान-चीन के बीच चले आ रहे सीमा विवाद को हल करने वार्ता में तेजी लाने के लिए एक समझौते का ऐलान किया है। डोकलाम में भूटानी क्षेत्र के भीतर 73 दिनों तक भारतीय और चीनी सैनिकों के आमने-सामने होने के चार साल बाद यह समझौता हुआ है। 2017 में डोकलाम विवाद के बाद से यह प्रक्रिया ठप हो गई थी।
अप्रैल 2021 में डोकलाम घटना के बाद पहली बार दोनों देशों के एक विशेषज्ञ समूह की बैठक हुई और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए। भूटान और चीन ने इस समझौते के तहत थ्री-स्टेप रोडमैप तैयार किया है। इसके जरिए दोनों देशों ने सीमा विवाद को सुलझाने की बात कही है। वहीं चीन की बढ़ती हरकतों ने भारत को सतर्क कर दिया है। यह समझौता भी ऐसा वक्त में हुआ है, जब लद्दाख समेत कई सीमांत क्षेत्रों में चीन के साथ भारत का सीमा विवाद चल रहा है। भारत ने 2017 में भूटान और चीन के बीच समझौतों के उल्लंघन में चीनी सैनिकों द्वारा सड़कों और बुनियादी ढांचे के निर्माण को रोकने के लिए अपने सैनिकों को भेजा था।भूटानी विदेश मंत्रालय के मुताबिक वार्ता को 1988 में सीमा के निपटान के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों और भूटान-चीन सीमा क्षेत्रों में शांति और यथास्थिति बनाए रखने पर 1998 के समझौते द्वारा निर्देशित किया गया है। भूटान और चीन के बीच हो रहे समझौते को लेकर भारत ने कोई कमेंट नहीं किया है। चीन और भूटान को लेकर हो रहे समझौते में भारत को लूप में रखा गया है या नहीं, के सवाल पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि हमने दोनों देश के बीच हो रहे समझौते को नोट किया है। उन्होंने कहा कि भूटान और चीन 1984 से सीमा वार्ता कर रहे हैं। भारत इसी तरह चीन के साथ सीमा वार्ता कर रहा है।
बीजिंग से जारी खराब संबंधों को लेकर भारत सतर्क है। इसके साथ ही नेपाल की तरह भारत भूटान को कतई नाराज नहीं करना चाहता है।एक्सपर्ट्स का मानना है कि भूटान की राजधानी थिम्पू में चीन की राजनयिक उपस्थिति नहीं है। नई दिल्ली ही बीजिंग और थिम्पू के बीच संबंधों का समन्वय करता रहा है। ऐसे में यह असंभव सा है कि भारत को इस समझौते को लेकर जानकारी नहीं हो।

Please do not enter any spam link in the comment box.