नई दिल्ली । भारत में कोविशील्ड के साथ कोवैक्सीन को पहली बार जनवरी में महामारी से लड़ने के लिए टीके के रूप में दिया जाने लगा था। लेकिन इधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत में विकसित कोविड वैक्सीन कोवैक्सिन के लिए आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (ईयूए) में और देरी कर दी है। इसके लिए डब्ल्यूएचओ ने भारत बायोटेक को अधिक तकनीकी प्रश्न भेजे हैं। इस देरी से भारतीयों, विशेषकर छात्रों की अंतर्राष्ट्रीय यात्रा योजनाओं पर प्रभाव पड़ने की संभावना है। बता दें कि के बिना, कोवैक्सीन को दुनिया भर के अधिकांश देशों द्वारा स्वीकृत वैक्सीन नहीं माना जाएगा। भारत बायोटेक का दावा है कि उसने सभी जरूरी दस्तावेज भेज दिए हैं इसके बावजूद डब्ल्यूएचओ ने ये प्रश्न भेज हैं। पहले खबर आई थी की डब्ल्यूएचओ जल्द इसे मंजूरी देगा लेकिन अब देरी के संकेत आ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार ने पिछले शुक्रवार को कहा था, "अप्रूवल के लिए दस्तावेज जमा करने की एक प्रक्रिया है। कोवैक्सिन को डब्ल्यूएचओ की ओर से आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण जल्द मिलने की उम्मीद है। इससे पहले वैक्सीन प्रशासन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष डॉ वीके पॉल ने भी कहा था कि कोवैक्सिन के लिए डब्ल्यूएचओ की मंजूरी इस महीने के अंत से पहले आने की संभावना है। भारत बायोटेक के अनुसार, कोवैक्सिन के तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल ने 77.8 प्रतिशत की प्रभावकारिता दर का प्रदर्शन किया था। बता दें कि कोविड-19 के खिलाफ कोवैक्सीन , कोविशील्ड को इस साल जनवरी में राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान में सबसे पहले शामिल किया गया। रूस निर्मित स्पुतनिक जैसे अन्य तो बाद में ही देश में आए।
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