
गर्भावस्था के दौरान दौरान खराब क्वालिटी या बीपीए युक्त प्लास्टिक बोतल में पानी पीने वाली महिलाओं के होने वालों बच्चों को पेट की बीमारियां हो सकती हैं। प्लास्टिक में पाया जाने वाले बीपीए रसायन के कारण पेट में मौजूद अच्छे और बुरे जीवाणुओं का संतुलन बिगड़ जाता है। इसके अलावा यह लीवर में दर्द और कोलोन में सूजन का कारण बन सकता है।
शोधकर्ताओं का दावा है कि जन्म से पहले गर्भ में रहने के दौरान ही बच्चे खतरनाक रसायनों के संपर्क में आ सकते हैं। यहां तक कि जन्म के ठीक बाद भी मां के दूध से उनमें खतरनाक रसायन जा सकते हैं।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार जन्म लेने के ठीक बाद मां के दूध से रसायनों के संपर्क में आए बच्चों को आगे की जिंदगी में पेट से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं.
दरअसल, बीपीए के नाम से प्रचलित बिस्फेनॉल ए एक तरह का औद्योगिक रासायन है, जिसे साल 1960 से प्लास्टिक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
बीपीए प्लास्टिक के कई कंटेनरों और बोतलों में पाया जाता है. खासतौर सस्ते और खराब क्वालिटी वाले बोतलों में इसका मिलना आम है। शोध में दावा किया गया है कि ऐसे ऐसे प्लास्टिक के बर्तनों में रखा गया खाना आसानी से बीपीए रसायन को सोख लेता है।
अध्ययनकर्ताओं ने यह अध्ययन खरगोशों पर किया है।
अध्ययन के दौरान पाया गया कि जो खरगोश प्रेग्नेंसी के दौरान बीपीए रसायन के संपर्क में रहे या बीपीए से दूषित खाने व पानी का सेवन किया, उनके बच्चों में जन्म लेने के 7 दिनों बाद से ही पेट से संबंधित परेशानियां उत्पन्न होने लगीं।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन से निष्कर्ष निकाला कि बीपीए एक्सपोज होने वाले बच्चों में गट बैक्टीरियल डिसबायोसिस विकसित हो जाता है, जिसके कारण उनके लीवर में दर्द, कोलोन सूजन आदि होता है।
इसलिए शोधकताओं ने गर्भवती महिलाओं को सुझाव दिया है कि वो खाना या पानी रखने के लिए ऐसी कंटेनर या बोतल का ही इस्तेमाल करें जो बीपीए मुक्त हों।

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