ऑक्सीजन एक्सप्रेस:आज मंडीदीप पहुंचेगी ‘सांसों’ वाली पहली ट्रेन, भोपाल को 31 टन 'प्राणवायु' मिलेगी
![ट्रेन में दो इंजन, ताकि कहीं रुकना न पड़े। - Dainik Bhaskar](https://images.bhaskarassets.com/thumb/600x450/web2images/521/2021/04/28/orig_2_1619560250.jpg)
- 1153 किमी के सफर में पांच जगह रुकी, वो भी स्टाफ बदलने के लिए
- राहत; 64 टन ऑक्सीजन प्रदेश के 40 हजार गंभीर मरीजों को एक दिन राहत दे सकती है
यहां टैंकर से ऑक्सीजन निकालकर जंबो सिलेंडरों में भरी जाएगी, फिर सिलेंडरों को उन अस्पतालों में बांट दिया जाएगा, जहां कोविड के गंभीर मरीज भर्ती हैं। यह प्रक्रिया हर दिन होगी। एलबीएस अस्पताल के फिजिशियन डॉ. विनय गुप्ता बताते हैं कि अभी ज्यादातर मरीज होम आइसोलेशन में हैं। जो गंभीर मरीज भर्ती हैं, उनमें से किसी को 5 लीटर प्रति मिनट तो किसी को 15 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन लग रही है। यदि इस हिसाब से कैलकुलेट करें तो 64 टन ऑक्सीजन एक दिन में 40 हजार गंभीर मरीजों के काम आ सकती है।
ग्रीन कॉरिडोर में भी ट्रेन की रफ्तार 50 से 60 किमी प्रति घंटे ही रहेगी
यह ट्रेन 1153 किमी के सफर में पांच जगह रुक रही है। यहां लोको पायलट, असिस्टेंट व गार्ड सहित स्टाफ बदलेगा। इसे लाने के लिए ग्रीन जोन बनाया गया है। इसका मतलब है कि रास्ते में अन्य किसी मालगाड़ी को इसके आगे नहीं चलाया जाएगा। फिर भी इसकी औसत रफ्तार 50 से 60 किमी प्रति घंटे रहेगी।
बिजली ग्रिड में आग लग जाए तब भी समय पर पहुंचेगी ट्रेन
इस एक्सप्रेस में दो इंजन हैं। एक इलेक्ट्रिक और दूसरा डीजल। यदि बिजली सप्लाई कभी भी फेल हो जाए या पॉवर ग्रिड जल जाए, तब भी डीजल इंजन से ऑक्सीजन एक्सप्रेस को सही समय पर गंतव्य तक पहुंचाया जा सकेगा। रेलवे ने क्रॉयोजनिक टैंकरों से लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई कर रही है।
गैस त्रासदी : जब मुंबई के स्टाफ ने संभाला था भोपाल स्टेशन
ऑक्सीजन संकट के वक्त जैसे रेलवे अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है, ठीक 37 साल पहले भी ऐसी ही जिम्मेदारी उस पर आ पड़ी थी। बात 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी की है। तब भोपाल स्टेशन मास्टर हरीश धुर्वे सहित 23 रेलकर्मियाें की मौत हो गई थी। पूरा स्टाफ बीमार था, तब मुंबई से रेल स्टाफ बुलाकर स्टेशन की कमान उसे सौंप दी गई थी।
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