सामाजिक विकास के लिये- क्या करें,क्य न करें!
कहानियों को हमारे बजर्गों ने संम्हाल कर रखा है। जैसे धनवान परिवार अपने धन को तिजोरी में संजोकर रखता हैऔर अपनी पिढ़ी को देकर जाता है। कहानियों के माध्यम से जो हमें शिक्षा परोसी जाती है। उसकी ना तो कोई पस्तक है, ना ही कोई इतिहास। फिर भी आज तक वह व्यवस्था चली आ रही है। क्योंकि वह सत्य है। असत्य बातें या सिद्धांत कुछ समय या वर्षों बाद लुप्त हो जाते हैं परंतु सत्य बातें कभी लुप्त नहीं होती वहा आगे बढ़ती जाती है ।इसलिये कहते हैं-अमीरी तो हमारे बुजुर्गों की थी, जेब खाली थी,किन्तु ज्ञान का अथाह भंडार लिये चलते थे,न जाने कितने सपने अपने बच्चों के लिये उनकी आंखों में पलते थे।आज लाखा रूपये खर्च करके भी वो शिक्षा प्राप्त नहीं होती,बुजुर्गों से बढ़कर इंसान की कोई साखा नहीं होती। अत: सभी सामाजिक बन्धुओं से निवेदन है कि समाज की पत्रिका में आपके अनुभव, आत्मज्ञान जो हैं उसे ही लेख के माध्यम से समाज को परोसे, रामायण, महाभारत या अन्य ग्रंथ की नकल करकेपरोसने से क्या फायदा इससे तो समाज ग्रंथो का ही पठन कर लेगी। कृपया समाज को मिठूनही ज्ञानी बनाना है, ऐसे प्रेरक ज्ञान देनेवाले लेख लिखकर समाज को देना है। 1.क्योंकि अपने लिये किया गयाकार्य, स्वार्थ होता है। 2.परिवार के लिये किया गया कार्य.कर्तव्यहोती है। 3.समाजयादेशकेलिये किया गयाकार्य.परमार्थहोताहै। देने के लिये दान, लेने के लिये ज्ञान,और त्यागनेकेलियेअभिमानसर्वश्रेष्ठहै।
अत:स्वार्थ एवं कर्तव्य तो सभी इमानदारी से करते हैं, परंतु परमार्थ के कार्य जो करता है। वही चीर स्मरणीय एवं यादगार, मील स्मरणीय एव यादगार, मलि का पत्थर जैसा रहता है। किसी भी समह के सदस्य द्वारा अगर कोई विशेष कार्य किया जाता है, तो उसको पुरुष्कृत करना चाहिये और अच्छे या विशेष कार्य हेतु हर तरह का सहयोग भी करना चाहिये । परंतु यह मानसिक्ता न होकर, उनके विशेष कार्य होने पर भी समह उनके प्रति ढेष या जलन रखाकर व्यक्ति को समूह से बाहर नहीं अंदर ही रखाना चाहते हैं। शायद यही समानता की सोच अपने समूह, घर-परिवार एवं समाज को आगे बढ़ने में रोक लगाती है।
प्रारंभ में व्यक्तिनशास्वाद के रूप में करता है। इसके बाद आनंद लेने हेतुनशा करताहै। इसके बाद नशा आदतन होने लगता है। इसके बाद बरबादहीने के लिये नशा करता है। इसके बाद बेइज्जत हेतुनशा करता है। इसके बाद मरने हेतुनशा करताहै। ऐसे व्यक्ति को घर-परिवार व समाज स्वीकार नहीं करता, फिर भी व्यक्ति नशा करता है। कृपया ऐसे कृत्य को घर-परिवार व समाज में प्रवेश न करने दें ऐसे कृत्य से सभी की
प्रगति अवरूढ होती है। आज तक हम जो विकास या एकता या संगठन की सामाजिक बातें करते हैं। उसमें घूम फिरकर एक ही बात समझ में आती है कि हर व्यक्ति या मात्र मेरा नाम, मेरा भला, मेरा फायदा के चक्कर में ही लगा है। किसी की भी आत्मा से पछो यह सही है या गलत आपकी आत्मा आपको जबाब देगी। जिस समाज में शिक्षा एवं संस्कार की कमी होती है, वहीं विकास एवं एकता का अभाव होता है। वहां मात्र स्वार्थ ही स्वार्थ समझ में आता है। वैसे तो हर प्राणी का एक दुसरे से स्वार्थही होता है, परंतु स्वार्थ के साथ कुछ कर्तव्य भी होता है। उसे हम उस कर्तव्य की अनदेखी करते हैं। इसी वजह से आपसी प्रेम एवं विकास की कमी होती जाती है। हर परिवार एवं समाज विकास हेतु अपने परिवार, समाज या व्यक्ति अपने से या अपने विकास तक ही सीमित रहता है, अन्य की 1 प्रतिशत भी परवाह नहीं करते। इसी वजह से जानकारी के अभाव में आगे के लोगों का मुह ताकते रहते हैं। हम जितना ज्यादा स्वयं में झांके और दुसरों का भला करें। हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होगा एवं परमात्मा उसमें बसेंगे। वर्तमान में हमारे पुण्य कर्म के अनुसार ईश्वर ने जो हमें धन-दौलत, इज्जत, भौतिक सुख-शांति दी है हमारे कर्मों की तुलना में बहुत अधिक है । इसलिये वर्तमान समय अपने जीवन में ऐसा कर्म, धर्म करें कि भविष्य में हमारी संतान को उसका सुख एवं समृद्धी मिल सके एवं भविष्य में आने वाले जन्म में भी हमें ईश्वर हर तरह की सभी खुशी, समृद्धी एवं सम्पन्नता कर्म अनुसार कई गुना प्रदान कर सके। ऐसी ईश्वर से कामना करते हैं और प्रार्थना करते हैं किसदकार्य, दान, धर्म एवं अच्छे कार्य करने हेतु ईश्वर सदबुद्धि एवं प्रेरणा प्रदान करें जिससे यह शरीर, घर-परिवार एवं समाज के लिये अच्छे कार्य करने के काम आ सके। प्रभु के सामने जो सबको अच्छा लग परंतु जो सबके सामने झुकता हैं,वह प्रभु को अच्छा लगता है। जय आखा जी! जय भाना जी!!
-ठाकुरलाल हुरमाले चौबे कॉलोनी हरदा मो.-8120616905
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