अदिवासी हुंकार रैली 17 नवंबर को भोपाल में
जल जंगल जमीन जीवन बचाओ महाअभियान
भोपाल- आदिवासी क्षेत्र संवैधानिक संकटों से गुजर रहा है। संविधान में पंचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वम अधिकार कानून,प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रण व प्रबंधन जैसे प्रावधानों के बाद भी उसका सही परिपालन नहीं करते हुए बेदखली एवं विस्थापन जैसी कार्यवाही जारी है। जानकारी देते हुए यात्रा समनवयक समाधान पटिल ने बताया कि इस संकट को खत्म करने के लिए समाजिक संगठनों को एकजुट करना एवं समुदाय में जागृति लाने के लिए प्रदेश में अदिवासी अधिकार हुंकार यात्रा की जा रही है। जल जंगल जमीन के लिए आयोजित इस अदिवासी हुंकार रैली में 17 नवंबर को भोपाल में प्रदेश के दो लाख से अधिक लागों के जुडनें की संभावना है। रैली में आदिवासीयों की संख्या के हिसाब से व्यवस्था के व्यापक इन्तजाम किए जा रहे है अब तक महाकोशल अंचल के बालाघाट, डिंडोरी, मंडला, सिवनी, नरसिंहपुर तथा जबलपुर जिले में अदिवासी संगठनों नें जिला व ब्लाक मुख्यालयों पर भारी संख्या में लागों के साथ सभाऐं व रैली अयोजित कर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौपा हैं। जल जंगल जमीन जीवन बचाओ के इस संयुक्त महाअभियान में कार्यरत आदिवासी समाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन,स्थनीय जनसंगठन, गोंडी पब्लिक ट्रस्ट,समाजिक चिंतक सहित संगठन के लोग आदिवासी अधिकार हुंकार यात्रा की तैयारी कर रहे है।
गोंडवाना क्रांति आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक गुलजार सिंह मरकाम ने कहा कि वन अधिनियम 1927 कानून का प्रस्तावित संशोधन आदिवासियों ही नहीं वरन् वन क्षेत्र में निवास करने वाले अन्य परंपरागत वन निवासियों की स्वच्छंदता स्वायत्तता और परंपरागत कृषि, स्वास्थ्य उपचार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आदिवासी ही नहीं देश के भूगोल और पर्यावरण को भी तहस-नहस करने के लिए लाया जा रहा है। प्रस्तावित कानून के ड्राफ्ट में आदिवासी जंगल से स्वास्थ्य के लिए जड़ी बूटी, अपने मकान बनाने तथा हल बखर, बैलगाड़ी के लिए लकड़ी नहीं ला पायेगें। इस नए संशोधित कानून का प्रारूप वन अधिकार अधिनियम 2006 तथा पेसा कानून के प्रावधानों को पूरी तरह खारिज करता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी की स्वास्थ्य उपचार हेतु जंगल में जड़ी बूटी लेने जाता है तो उसे वन कर्मी बिना पूछताछ किए जंगल में घूमने का आरोप लगाकर जेल भेज सकता है। उसकी मर्जी के हिसाब से नए कानून के आधार पर प्राप्त बंदूक से उसका एनकाउंटर कर सकता है। जिसकी सुनवाई केवल वन विभाग तंत्र की रिपोर्ट के आधार पर ही संभव है। वन कर्मी यदि कह दे की ये व्यक्ति संदिग्ध रूप से वन क्षेत्र में घूम रहा था। तो उसको सजा संभव है या एनकाउंटर होने पर वन विभाग को कोई सफाई देने की आवश्यकता नहीं होगी। विश्व परिवार पर्यावरण को बचाने के लिए कार्बन ट्रेडिंग के नाम पर वन क्षेत्रों में निवास करने वाले चाहे वह राजस्व हो या वन भूमि के अधिकार पत्र प्राप्त हितग्राही ही क्यों ना हो उनकी जमीन को कैंपा नियम के आधार पर एक नोटिस पर उसकी जमीन को हथीया कर वन विभाग उसमें पौधारोपण कर देगा। इसमें भूमि स्वामी कोई अपील नहीं कर सकेगा यदि उसने या अधिक लोगों ने ऐसे कृत्य का विरोध किया तो उसे संविधान विरोधी कानून विरोधी बताकर राष्ट्र विरोधी के नाम पर नक्सलवादी या आतंकवादी करार दिया जाएगा। जिसे मीडिया और संचार माध्यम से देशद्रोही के रूप में प्रचारित कर देश के जनमानस में विलेन के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ तथा अन्य आदिवासी बहुल राज्यों में हुंकार रैली के माध्यम से जन जागरण अभियान चलाकर जनता को इस हकीकत से अवगत कराने का लक्ष्य रखा गया है। देश के समस्त मानव वादी प्रकृति वादी सोच के नागरिकों को एक सूत्र में पिरोकर आवाज उठनें की अपील की जा रही है। इस अभियान के अंतर्गत 17 नवंबर को भोपाल तथा 18 नवंबर को छत्तीसगढ़ में जल जंगल जमीन जीवन बचाने के महाअभियान में बडी संख्या में लोग जुटेंगें।
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