यूपी डीजीपी पद से हटाए गए मुकुल गोयल, आदेश की अवहेलना पर एक्शन
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यूपी डीजीपी पद से हटाए गए मुकुल गोयल, आदेश की अवहेलना पर एक्शन


Lucknow : उत्तर प्रदेश के डीजीपी मुकुल गोयल को विभागीय कार्यों में रुचि न लेने के आरोप में पद से हटा दिया गया है. डीजीपी पद से हटाने के बाद उन्हें डीजी नागरिक सुरक्षा के पद पर भेजा गया है. इस बीच एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार को राज्य में नए डीजीपी की नियुक्ति तक डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. अब नई तैनाती को लेकर अटकलों का बाजार गरम हो गया है. ऐसे में जनना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर प्रदेश का नया डीजीपी कौन होगा.

मुकुल गोयल अब किसकी जगह लेगें?
बता दें कि डीजीपी के पद से हटाए जाने के बाद मुकुल गोयल के लिए डीजी सिविल डिफेंस का पद खाली कराया गया है. जबकि डीजी सिविल डिफेंस रहे विश्वजीत महापात्रा को डीजी को-आपरेटिव सेल बनाकर भेजा गया है. विश्वजीत महापात्रा के हटने के बाद डीजी सिविल डिफेंस का पद खाली हुआ है. मसलन, मुकुल गोयल अब डीजी सिविल डिफेंस का काम देखेंगे.

कौन हैं मुकुल गोयल?
मुकुल गोयल 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. अपने लंबे करियर में उन्होंने कई अहम पदों पर काम भी किया है और उन्हें उनके काम के लिए सम्मान भी मिला है. 22 फरवरी 1964 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में मुकुल गोयल का जन्म हुआ था. आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल में बीटेक करने के साथ मुकुल गोयल ने मैनेजमेंट में एमबीए की डिग्री हासिल की थी. इसके अलावा फ्रेंच भाषा पर भी उनकी जबरदस्त पकड़ है.1987 में आईपीएस बनने के बाद मुकुल गोयल की पहली तैनाती बतौर एडिशनल एसपी नैनीताल में हुई थी. प्रोबेशन पीरियड खत्म करने के बाद एसपी सिटी बरेली बनाए गए और बतौर कप्तान मुकुल गोयल का पहला जिला अल्मोड़ा रहा. अल्मोड़ा के बाद मुकुल गोयल लगातार कई जिलों में कप्तान रहे, जिसमें जालौन, मैनपुरी, आजमगढ़, हाथरस, गोरखपुर, वाराणसी, सहारनपुर, मेरठ शामिल रहें. वहीं ईओडब्ल्यू और विजिलेंस में भी उन्हें एसपी बनाया गया था.

सपा सरकार में बने थे एडीजी कानून-व्यवस्था
यह पहली बार हुआ है जब किसी डीजीपी पर अकर्मण्यता का आरोप लगाते हुए सीधे डीजी नागरिक सुरक्षा के पद पर भेजा गया है। इससे पहले कई डीजीपी हटाए गए लेकिन उन्हें अकर्मण्यता के आरोप के चलते सीधे नागरिक सुरक्षा के पद पर नहीं भेजा गया। सपा सरकार में वर्ष 2013 में मुकुल गोयल को एडीजी कानून-व्यवस्था बनाया गया था। पूरे चुनाव के दौरान पुलिस के मुखिया की जो नेतृत्व क्षमता दिखनी चाहिए थी, वह भी न दिखने के कारण शासन नाराज चल रहा था। 

सहारनपुर में एसएसपी रहते हुए किए गए थे सस्पेंड
मुकुल गोयल वर्ष 2006 में सपा शासनकाल में हुए सिपाही भर्ती घोटाले में भी विवादों में रहे थे। उन पर आरोप थे कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री व शासन में बैठे अधिकारियों के इशारे पर भर्तियां की थीं। मायावती ने सरकार बनाने के बाद मामले की जांच सौंपी थी। बसपा शासनकाल में 23 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को निलंबित किया गया था। जब तक कोई कार्रवाई होती उससे पहले ही मुकुल गोयल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। सहारनपुर एसएसपी रहते हुए एक नेता की हत्या के बाद हुए बवाल में मुकुल गोयल को निलंबित कर दिया गया था।

हाल में हुई घटनाओं से नाराज थे योगी
पिछले दिनों ललितपुर में थाने के अंदर एसओ द्वारा रेप पीड़िता के साथ रेप की घटना और उसके अगले दिन ही ललितपुर के ही थाने में एक महिला को निर्वस्त्र करके पीटने का मामला सामने आ गया। उसी दौरान चंदौली की घटना में भी पुलिस के रवैये से सरकार खफा थी। माना जा रहा है कि इन आपराधिक घटनाओं में पुलिस की निष्क्रियता के चलते मुख्यमंत्री खासे नाराज़ चल रहे थे।

समीक्षा बैठक में गैरहाजिरी चर्चा का विषय बनी
विभाग में हमेशा ऐसी अकटलें लगाई जाती रहीं कि डीजीपी मुकुल गोयल के शासन के साथ रिश्ते अच्छे नहीं हैं। इन अटकलों को उस समय बल मिला जब पिछले दिनों उन्होंने लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली का निरीक्षण किया। उन्होंने प्रभारी इंस्पेक्टर के कार्यों पर नाराजगी जताते हुए उन्हें हटाने का निर्देश दिया लेकिन अंतत: इंस्पेक्टर को नहीं हटाया गया। इस घटना के कुछ ही दिनों बाद मुख्यमंत्री ने सभी जोन, रेंज व जिलों के पुलिस अधिकारियों को अपने विवेक से काम करने और साफ-सुथरी छवि के पुलिस कर्मियों को ही फील्ड में महत्वपूर्ण तैनाती देने का निर्देश दिया था। तब यह माना गया था कि यह निर्देश डीजीपी को ही ‘संदेश’ देने के उद्देश्य से दिया गया। इसी तरह कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर मुख्यमंत्री की वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान डीजीपी की अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय बनी थी। इस वीडियो कांफ्रेंसिंग में मुख्यमंत्री के साथ शासन के आला अफसरों के साथ अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी और एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार मौजूद थे, जबकि डीजीपी लखनऊ में मौजूद होने के बावजूद इसमें शामिल नहीं हुए थे। आईपीएस अफसरों के तबादलों में हो रही देरी को भी डीजीपी से शासन की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा था। विधानसभा चुनाव के बाद से ही पुलिस कमिश्नरेट समेत जोन, रेंज व जिलों में तैनात कई अफसरों का तबादला संभावित है।
 






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