कटनी जिले के मझगंवा बीट की वीरान पहाड़ी में जी उठा जंगल
जन सहभागिता से साढ़े छहः सौ हेक्टेयर की पहाड़ी में हुआ बिगड़े वन का सुधार
ग्रामीणों ने पेश की संयुक्त वन प्रबंधन की अनूठी मिसाल
कटनी- समाज की लापरवाही और मनुष्य द्वारा लगातार जंगल काटे जाने की वजह से कुछ साल पहले तक कटनी जिले के मझगंवा की पहाड़ी गिने-चुने पेड़ों के तनों के ठूंठ और जंगली झाडि़यों तक सिमट गई थी, आज वहां मिश्रित प्रजाति के हजारों पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं। अब यह पहाड़ी ग्रामीणों की जनसहभागिता और संयुक्त वन प्रबंधन से बिगड़े वनों के सुधार की मिसाल बन गई है।
करीब 652 हेक्टेयर क्षेत्र के इस बिगड़े वन को वन समिति की सहभागिता और सक्रियता से नया जीवन मिला। पेड़-पौधों से उजाड़ और वीरान हो चुकी मझगंवा की इस पहाड़ी में अब जंगल जी उठा है। दरअसल कटनी शहर के नजदीक होने के कारण अत्यधिक जैविक दबाव, जलाऊ लकड़ी की आपूर्ति एवं आस-पास के ग्रामीण इलाकों के करीब 4 हजार से अधिक पालतू पशुओं की चराई भी इसी वन क्षेत्र पर निर्भर थी। जिससे मझगंवा का पूरा जंगल बिगड़े वन क्षेत्र में परिवर्तित हो गया था।
मझगवां बीट के आरएफ-107,108 से मझगवां, बंजारी, पौड़ी, छैगरा, बिजौरी, उमड़ार गांव से लगा वन विभाग का 652 हेक्टेयर रिजर्व फारेस्ट है। मझगवां वन समिति के अध्यक्ष संतराम कुशवाहा ने बताया कि कुछ साल पहले जंगल नष्ट होने की स्थिति में पहुंच गया था। वन विभाग ने इस क्षेत्र में वन सुधार के तहत काम करना शुरू किया और उसमें वन समिति के सदस्यों की मदद ली गई। 11 सदस्यीय वन ग्राम समिति ने वन विभाग के साथ पौधे रोपने के साथ ही उनके वृ़क्ष बनने तक और पुराने पेड़ों को सुरक्षित रखने की कवायद प्रारंभ की। उसका नतीजा यह है कि 652 हेक्टेयर वन भूमि वर्तमान में हरियाली से भरी है।
शहर से लगा यह वन क्षेत्र जहां आमजनों को आकर्षित करता है तो वहीं जंगल में वन्य प्राणियों को भी सुरक्षित स्थान मिल रहा है। यहां पर वन विभाग ने वन्य प्राणियों को पानी पीने के लिए समाजसेवी संस्था के माध्यम से पौंसरा की व्यवस्था की है और जंगल में राष्ट्रीय पक्षी मोर, चीतल, सांभर, जंगली सुअर, नीलगाय सहित अन्य वन्य प्राणी निर्भय होकर विचरण करते हैं, जो यहां से गुजरने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र होते हैं।
वन मंडलाधिकारी कटनी आरसी विश्वकर्मा बताते हैं कि इस पहाड़ी को हरितिमा से आच्छादित करने में ग्रामीणों की समझ और सहभागिता प्रशंसनीय है। वन समिति के सदस्यों ने न केवल पेड़ों की देखरेख की बल्कि कटाई करने वालों को जंगल और पेड़ों का महत्व बताकर लोगों को जागरूक करने का भी काम किया। श्री विश्वकर्मा कहते हैं कि सही मायनों में ग्रामीण ही इस पहाड़ी के पेड़-पौधों के सबसे बड़े रखवाले हैं। इनकी जिद और जुनून ने ही पहाड़ी को हरा-भरा कर दिया है।
रेंजर एल.एन. चौधरी ने बताया कि अब इस पहाड़ी के घने जंगल में चीतल, सांभर, हिरण, खरगोश, जंगली सु्अर और सियार बड़ी संख्या में हैं साथ ही अनेक प्रजातियों के पक्षियों का भी कलरव सुनाई देता है।
652 हेक्टेयर के रिजर्व फारेस्ट के पेड़ों व वन्य प्राणियों की सुरक्षा में वर्तमान वन समिति अध्यक्ष संतराम कुशवाहा के साथ ही उपाध्यक्ष कत्ती बाई, सदस्य चुटुवादी कोल, प्रीति कुशवाहा, बोधन प्रसाद चौधरी, लक्ष्मण प्रसाद सोनी, सुभाष कुशवाहा, संतोष कोल, सिकंदर कोल, बापी तरफदार भी रिजर्व फारेस्ट के पेड़ों की सुरक्षा में सहयोग प्रदान करते हैं। बीट गार्ड शक्तिपाल सिंह ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में वन क्षेत्र को सुधारने और पेड़ों, वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए दो चौकीदार फूलचंद कोल व दुलीचंद कोल को भी तैनाम किया गया है, जो वर्षों से ग्रामीणों, वन समितियों के सदस्यों के सहयोग से वन व वन्य प्राणियों की सुरक्षा में 24 घंटे सेवाएं देते हैं।
पहाड़ी के आसपास के ग्रामीणों को अब इस जंगल से गिरी-पड़ी सूखी जलाऊ लकड़ी के अलावा तेंदूपत्ता, महुआ, अचार एवं अन्य वन औषधीय वनोपज उत्पाद भी प्राप्त हो रहे हैं। समिति द्वारा इन उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्य या इससे अधिक दर पर विक्रय कर लाभांश के रूप में आय अर्जित हो रही है।
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