निधि कौशिक एक लेखिका हैं, जिनकी रचनाएँ काफी पत्रिकाओं और पुस्तकों में भी प्रकाशित होती हैं और भोपाल मे होने वाले कवि सम्मेलनों में भी निधि बढ़ चढ़ कर भाग लेती हैं। ये ज्यादतर सामाजिक मुद्दों और महिला सशक्तिकरण पर लिखना पसंद करती हैं और अपनी रचनाओं के माध्यम से एक नये और बेहतर समाज की कल्पना को सच करने की कोशिश में रहती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में भी इनके विचार काफी सराहनीय हैं। निधि का मानना है की महिला सशक्तिकरण की बातें आज भी केवल कागज़ों में ही लिखी जाती हैं, उन पर अमल करना अभी भी बाकी है।
जब भी महिला दिवस आता है, तो दिन भर लिखा जाता है, स्त्री के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के संदर्भ में,
लेकिन दिन ढलते ही कहेंगे की रहो मर्यादा में या मार डालेंगे गर्भ में।
उनकी एक रचना है जिसका शीर्षक है दो बलात्कार, ये कविता महिलाओं के स्थिति के बारे में काफी कुछ बताती है।दो अलग परिवार, जैसे दो अलग संसार ,
दोनों में बेटियां, दोनों की अलग परवरिश , दोनों का अलग व्यवहार।
एक अपने सपनों को पूरा करने की ज़िद्द पे अडी थी, तो दूसरी मां बाप की खुशियों के लिए ख़ुद से लड़ी थी।
एक आसमान छूने के रास्ते पर थी और एक की राह में किस्मत ने कांटे चुने थे।
कपड़ों पर दोनों के ही सवाल उठ रहे थे, एक के ज़्यादा छोटे थे, और दूसरी के पुराने हो चले थे।
ज़्यादा बोलने वाली बदतमीज थी और अपने लिए भी ना बोलने वाली की पैदाइश गरीब थी।
हैवान हर तरफ रहते थे दोनों के ,एक नजरअंदाज करती थी और दूसरी लोग क्या कहेंगे इसका ज़्यादा खयाल करती थी।फिर एक दिन मंज़र दोनों जगह बिल्कुल हूबहू था, अलग किस्मत, अलग परवरिश, कपड़े भी अलग थे , पर दोनों का एक सा हाल हो चला था।
जिसका बलात्कार हुआ था, उससे कोई शादी नहीं करना चाहता था और जिसकी शादी हो चुकी थी, उसका हर रोज़ बलात्कार हो रहा था।
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