भोपाल । अपनी मांगों को लेकर प्रदेश भर के सहकारिता कर्मचारियों ने गेहूं खरीद का बहिष्कार कर दिया और आंदोलन की शुरुआत कर दी हैा ऐसे में समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी का काम रुक गया है। इससे किसान परेशान है। उसके गेहूं की तुलाई का काम नहीं हो पा रहा है। ट्रालियां धूप में खड़ी हुई हैं। किसानों का कहना है कि गेहूं का वजन कम हो रहा है। रुपयों की जरूरत है, वह भी पूरी नहीं हो रही है। हड़ताल करने वाले सहकारी कर्मचारी है। ये प्रदेश की सहकारी गेहूं उपार्जन समितियों में वर्षों से काम करते आ रहे हैं। पूर्व में इनकी संख्या एक लाख से अधिक थी। बीच में इनमें से हजारों कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए, कुछ की मौत हो गई है। बचे हुए कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने हमें शासकीय सेवक नहीं माना है। हमारी मांग है कि हमें भी नियमित कर्मचारी माना जाए और उसी के मुताबिक वेतनमान दिया जाए। जब तक ये दो मांगे नहीं मान ली जातीं, तब तक गेहूं खरीदी से इंकार कर रहे हैं। बता दें कि इन कर्मचारियों ने पूर्व में भी विरोध दर्ज कराया था। तब शासन की तरफ से इन्हें मना लिया गया था और इन्होंने गेहूं खरीद शुरू कर दी थी। इन्होंने मांगें पूरी नहीं होने का आरोप लगाते हुए बीते हफ्ते से फिर हड़ताल शुरू की है। ये हाल ही में राजधानी में सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरियों के बंगले तक पहुंचे थे, जहां इन्होंने चार घंटे तक विरोध दर्ज कराया था। फिर ये लौट गए थे। तब से जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। मप्र सहकारिता समिति कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष बीएस चौहान का कहना है कि किसी भी जिले में काम नहीं कर रहे हैं। सरकार ने ही हमें इसके लिए मजबूर किया है। सरकार के लिए 55 हजार कर्मचारियों की जायज मांगों को पूरा करना बड़ी बात नहीं है, तब भी शासन के कुछ अधिकारियों ने हठधर्मिता वाला रवैया अपनाकर रखा है। ये मुख्यमंत्री के सामने मूल समस्या को पेश नहीं कर रहे हैं। कह रहे हैं कि सहकारी कर्मचारियों के बिना भी गेहूं खरीद हो जाएगी, जो संभव ही नहीं है। यह कदम किसानों की मेहनत पर पानी फेरने जैसा साबित होगा, लेकिन अधिकारियों को इससे लेना देना नही है। बीएस चौहान ने मांग की है कि सरकार को उनकी मुश्किलों को देखते हुए उनकी मांगों को मानना चाहिए, क्योंकि यह उनका हक है। वे वर्षों से शासकीय कामकाज ही कर रहे हैं।
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