जिला प्रशासन व कृषि महाविद्यालय बालाघाट के कृषि वैज्ञानिको द्वारा चनोली के महत्व को देखते हुए व ब्रिटीश काल के समय के एतिहासिक प्रमाणों के आधार पर जी.आई.टैग के लिए प्रयासरत है। चनोली के विषय मे प्राप्त जानकारी व परीक्षणो के आधार पर यह स्वादिष्ट, पौष्टिक व औषधियुक्त दलहनी फसल है। जो कि बालाघाट व सिवनी जिले के किसान इसे परंपरागत तरीके से प्राचीन काल से उगाते आ रहे है। इसकी उपयोगिता के बारे मे राष्ट्रीय व अंर्तराष्ट्रिय स्तर पर प्रचार-प्रसार कर इसे जी.आई. टैग दिलाने के लिये जिओग्राफीकल इंडीकेशन रजिस्ट्री आफीस चेन्नई में आवेदन कर दिया गया है। जिले के चिन्नौर चावल को जी.आई टैग मिलने से चिन्नौर उगाने वाले किसानों की आय में वृद्धि हुई हैं। जिससे आने वाले समय में चिन्नौर उगाने के लिये किसानों का रूझान बढ़ा है।
डॉ. उत्तम बिसेन ने बताया की चानी को किसान पारम्परिक रूप से छोटे - छोटे रकबे में धरेलू उपयोग व दवा के रूप में शौकियातौर पर ही लगाते है।यह बहुत छोटे आकार वाली सफेद चने की प्राचीन किस्म है, इसके दाने चना व बाजार में चनोली के नाम से मिलने वाले मंझोली चने से आकार मे आधे व छोले की तुलना मे 5 गुना छोटे होते है। परीक्षण के आधार पर चानी मे काबुली एवं देषी चने की तुलना में एण्टी अॅंक्सीडेंट कम्पाउंड प्रोटीन व मिनरल्स अधिक मात्रा मे पाये जाते है। जानकार लोगों कि मान्यता अनुसार यह गरम प्रकृति की होती है जिसके कारण इसे वात रोग से ग्रसित लोगो को सेवन करने की सलाह दी जाती हैं, कब्ज, बवासिर, चर्मरोग, एवं वायुविकार के उपचार में भी अन्य औषधियों के साथ वैधों व आर्युवेदिक चिकित्सकों के द्वारा इसके सेवन की अनुसंषा की जाती है। जिन किसान भाइयों ने वर्तमान में चनोली लगया है उसकी अच्छे से देखभाल करें व बीज के रूप में तैयार करें जी.आई.टैग मिलने पर उन्हे उपज का बहूत अच्छा मूल्य प्राप्त होगां।
कलेक्टर डॉ गिरीश कुमार मिश्रा ने बताया कि क्षेत्र विशेष की प्राकृतिक दशा के कारण वहाँ उगने वाली फसले कुछ विशेष गुण रखती है ऐसे एतिहासिक प्रमाण है कि इस क्षेत्र में चानी-चनोली की खेती प्राचीन समय से होती आ रही है, जोकि पौष्टिक एवं औषधीय महत्व रखती है। परन्तु इसके कम उत्पादकता एवं किसानों को सही बाजार मूल्य न मिलने के कारण साल दर साल इसका रकबा कम होता जा रहा है। सरकार की मंशानुसार “वोकल फार लोकल“ के तहत चानी/चनोली के संरक्षण एवं किसानों को इसका उचित मूल्य मिल सके इसके लिए जी.आई. टैग दिलाने के प्रयास किये जा रहे है ताकि इस महत्वपूर्ण दलहनी फसल को देश विदेश में वास्वविक पहचान मिल सके और जिले के किसानों की आय में वृद्धि हो सकें ।
जवाहर लाल नेहरू कृषि वियवविद्यालय के कुलपति श्री प्रदीप बिसेन ने बताया कि चनोली एक परंपरागत स्वास्थ वर्धक औषधिय महत्व वाली पौष्टिक गुणों से भरपूर दलहनी फसल है, स्वस्थ व निरोगी रहने के लिए अपने दैनिक उपयोग में लाने व आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षण की आवष्यकता है। इसके महत्व को देखेते हुए इसका रकबा एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयास किये जा रहे है। चनोली को उसके गुणों के कारण जी. आई. टैग मिलना चाहिए ताकि इसके गुणों से देश विदेश के लोग परिचित हो और जिले के किसानों की आय में वृद्धि हो सकें ।
संचालक अनुसंधान सेवाऐं कृषि वि.वि. जबलपुर डॉ. जी. के. कौतू के अनुसार चानी/चनोली बालाघाट सिवनी क्षेत्र की चने की पुरानी प्रजाती है जिसका खाने के अलावा औषधिय महत्व भी है। प्रयोगषाला में चने व छोले के साथ चानी के पोषक मूल्य परीक्षण में पाया गया कि चानी में उपयोगी पोषक तत्व अधिक मात्रा में है साथ ही साथ इसकी उन्नत उत्पादन तकनीक पर भी काम चल रहा है ताकी इसकी प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाई जा सके। जी.आई.टैग मिलने से किसानों की आय मे वृध्दि होगी।
डॉ. एन. के. बिसेन, अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय बालाघाट ने बताया कि चानी बालाघाट जिले कि अमूल्य धरोहर है जिसके संरक्षण की एवं वैष्विक मंच पर पहचान दिलाने कि आवष्यकता है। इस हेतु कृषि महाविद्यालय, बालाघाट के वैज्ञानिकगण विगत वर्षो से प्रयास कर रहे थे । इसके आवष्यक दस्तावेज व प्रमाणों के आधार पर जी.आई.टेग हेतु आवेदन कर दिया गया है।
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