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जयपुर. भारत में सदियों से पति और पत्नी का बंधन सात जन्मों का माना जाता है. पति और पत्नी के बीच प्रेम की हजारों कहानियां (Love Story ) भी यहां मौजूद हैं. लेकिन पति और पत्नी के बीच प्रेम क्या होता है? यह कोई राजस्थान के अजमेर निवासी विजेंद्र सिंह राठौड़ (Vijender Singh Rathore) से सीखे. केदारनाथ त्रासदी से गुजर चुके विजेन्द्र सिंह राठौड़ ने पति और पत्नी ने प्रेम को जो मिसाल पेश की है वह शायद ही आपको कहीं सुनने को मिले. केदारनाथ त्रासदी के गवाह रहे विजेन्द्र सिंह की पत्नी लीला के भी लहरों में बह जाने का अंदेशा था, लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. विजेन्द्र पत्नी की तस्वीर लिये 19 महीने तक गांव दर गांव फिरते रहे. करीब 1000 हजार गांवों की खाक छानने के बाद आखिर उन्हें उनकी लीला मिल गई. पति-पत्नी के प्रेम की इस सत्यकथा पर जल्द ही बॉलीवुड के प्रख्यात डायरेक्टर सिद्धार्थ रॉय कपूर अब एक फिल्म बनाने जा रहे हैं.अजमेर निवासी विजेंद्र एक ट्रैवल एजेंसी में कार्यरत थे. वर्ष 2013 मे लीला ने अपने पति विजेंद्र सिंह से आग्रह किया कि वह चार धाम की यात्रा करना चाहती हैं. उसी दरम्यिान ट्रैवल एजेंसी का एक ट्यूर केदारनाथ यात्रा पर जाने वाला था. विजेन्द्र सिंह भी पत्नी लीला को लेकर उनके साथ केदारनाथ जा पहुंचे. केदारनाथ में वे एक लॉज में रुके. पत्नी लीला को लॉज में छोड़कर विजेंद्र किसी काम से बाहर गए थे. इसी बीच चारों तरफ कोहराम मचने लगा. पता चला कि उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ का उफनता पानी केदारनाथ तक आ पहुंचा है.
नजारा देखकर उनका दिल दहल उठा
विजेंद्र सिंह ने बड़ी मुश्किल से वहां अपनी जान बचाई. पानी का उफनता वेग जब शांत हुआ तो विजेंद्र उस लॉज की ओर भागे जहां वे अपनी पत्नी लीला को छोड़कर आये थे. लेकिन वहां का नजारा देखकर उनका दिल दहल उठा. सब कुछ पानी में बह चुका था. प्रकृति के इस तांडव के आगे वहां हर शख्स बेबस दिखाई दे रहा था. मंजर देखकर विजेन्द्र का दिल दहल उठा और एक पल के लिये मन में विचार आया कि क्या लीला भी इसमें बह गई? लेकिन विजेंद्र ने अपने मन को समझाया और दिलासा दी कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता है.
हर शख्स से ना में जवाब मिला लेकिन यकीन नहीं किया
विजेन्द्र का मन कह रहा था इतने वर्षों का साथ एक नहीं छूट सकता. लेकिन वहां के भयावह मंजर में आस-पास कहीं भी जीवन दिखाई ही नहीं दे रहा था. चारों तरफ लाशें बिखरी पड़ी थी. किसी का बेटा तो किसी का भाई पानी में बह गया था. वहीं किसी का पति तो किसी की पत्नी पानी में समा गये थे. विजेंद्र अपने पर्स में हमेशा अपनी पत्नी की तस्वीर रखते थे. अगले ही पल उन्होंने वो तस्वीर पर्स से निकाली और जुट गये लीला को ढूंढने के लिये. बदहवास विजेन्द्र हर किसी से पूछता भाई इसे कहीं देखा है? लेकिन जवाब हमेशा ना में ही मिलता रहा. लेकिन विजेन्द्र हालात को स्वीकार करने के लिये कतई तैयार नहीं थे लीला उन्हें छोड़ गई?
सभी का मानना था कि लीला बाढ़ में बह चुकी है
इसी बीच राहत कार्य भी शुरू हो चुका था. करीब दो हफ्ते बाद फौज के कुछ अफसर से विजेन्द्र सिंह की मुलाकात हुई तो उनसे इस बारे में बात की. करीब-करीब सभी का मानना था कि लीला बाढ़ में बह चुकी है. लेकिन विजेंद्र सिंह उनके अंदेशे को मानने से इनकार कर दिया. विजेन्द्र सिंह ने घर पर फोन मिलाकर बच्चों को इस हादसे के बारे में सूचना दी तो वे भी सहम गये कि की मम्मी भी…बेटी ने जब विजेन्द्र सिंह से इसका अंदेशा जताया तो उन्होंने उसे डांट दिया कि वह ज़िंदा है.
सरकार ने भी लीला को मृत घोषित कर दिया था
हादसे के करीब महीने के बाद भी विजेन्द्र पत्नी की तलाश में हाथ में उसकी तस्वीर लिये दर-दर भटक रहे थे. इसी दरम्यिान उनके घर पर सरकारी महकमे से फोन आया. फोन करने वाले ने बताया लीला मृत घोषित कर दी गई है. हादसे में जान गवां चुके लोगों के परिजनों को सरकार मुआवजा दे रही है. वे भी ऑफिस में आकर मुआवजा ले सकते हैं. लेकिन विजेन्द्र ने मुआवजा लेने से भी इंकार कर दिया. विजेन्द्र के मन यह कतई स्वीकार नहीं कर रहा था कि लीला अब नहीं रही. परिजनों ने समझाया लेकिन वे इसे स्वीकार करने को तैयार ही नहीं हुये.
27 जनवरी 2015 को विश्वास ने दिखाया रंग
विजेन्द्र अपनी जिद्द पर अड़े रहे और फिर से लीला की तलाश में उत्तराखंड निकल पड़े. उत्तराखंड का शहर-शहर और गांव-गांव की खाक छानते हुये विजेन्द्र को करीब 19 महीने बीत चुके थे. इस दौरान वे लगभग 1000 से अधिक गांवों में लीला की तलाश कर चुके थे. उसके बाद विजेन्द्र के विश्वास ने रंग दिखाया. 27 जनवरी 2015 को उत्तराखंड के गंगोली गांव में एक राहगीर को विजेंद्र सिंह ने जब लीला की तस्वीर दिखाई तो उसने हां में सिर हिलाया. उसने बताया कि यह औरत तो बौराई हुई सी हमारे गांव में घूमती रहती है. विजेंद्र राहगीर के पांवों में गिर पड़े और उसके साथ उसके गांव पहुंचे. वहां एक चौराहे पर सड़क के कोने पर एक महिला बैठी थी. विजेन्द्र देखा तो वह लीला ही थी.
बच्चों ने मां को देखा तो रो पड़े
लीला को देखकर विजेन्द्र उसका हाथ पकड़कर बैठ गये और बच्चे की तरह रोने लगे. हालांकि पत्नी की तलाश में उनकी आंखें पथरा चुकी थी लेकिन उस दिन उनमें भावनाओं का वेग बह निकला. लीला की मानसिक हालत ठीक नहीं थी. वह अपने पति विजेन्द्र को भी नहीं पहचान पाई. विजेंद्र ने लीला को वहां से उठाया और अपने घर ले आए. 12 जून 2013 से बिछड़े बच्चों ने जब अपनी मां को देखा तो उनकी भी आंखें बह निकली.
जीवन का सबसे कठिनतम दौर था वह
लीला की तलाश में गुजारे गये ये 19 महीने विजेंद्र सिंह राठौड़ के जीवन का सबसे कठिनतम दौर था. लेकिन उन्होंने इस कठिनाई के बीच भी अपने हौसले से प्रेम के धागे को बांधे रखा. विजेन्द्र के पत्नी के प्रति अटूट प्रेम और विश्वास ने प्रकृति के आदेश को भी उलटकर रख दिया. ईश्वर को भी विजेंद्र के प्रेम और समर्पण के आगे अपना फैसला बदलना पड़ा.
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