उस्ताद पूरन चंद वडाली अपने पुत्र लखविंदर वडाली के साथ गमक के मंच पर अवतरित हुए , सारा पंडाल मानो उठ खड़ा हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट से रसिकों ने उनका स्वागत किया। जवाब में उस्ताद पूरन चंद वडाली ने शेर पढ़ा - " जितना दिया है सरकार ने मुझको उतनी मेरी औकात नहीं, ये तो करम है उनका बरना मुझमें तो कोई बात नहीं। वे आगे बोले तानसेन कहीं गए नही वो तो रूहानी आत्मा है जो यहीं है ये हमारा सौभाग्य है कि आज उनके दर पर हम हाजिरी लगाने आये हैं। सर्द मौसम में जमी महफ़िल में पद्मश्री पूरनचंद्र बडाली एवं लखविंदर बडाली ने जब अमीर खुसरो रचित प्रसिद्ध कलाम "खुसरो रैन सुहाग की जो जागी पी के संग" से अपनी सूफियाना गायकी आगे बढ़ाई तो सम्पूर्ण वातावरण में गरमाहट दौड़ गई। अगली प्रस्तुतियां भी लाजवाब रहीं। " तू माने या माने दिलदारा असां ते तैनूं रब मनया" इस कलाम को भी उन्होंने पूरी शिद्दत से पेश किया। इसके बाद " वे माहिया तेरे बेखन नूं" और नी मैं कमली यार दी कमली" जैसे पंजाबी और सूफियाना रचनाओं को पेश कर वडाली पिता पुत्र ने रसिकों को ऐसा रसपान कराया कि रसिक मानो सुध बुध खो बैठे। सूफियाना अंदाज पद्मश्री पूरनचंद्र बडाली एवं लखविंदर बडाली के कलाम, भजन व गीतों में ही नहीं उनके मिजाज में भी झलकता है। गायकी से ईश्वर की इबादत के लिए बडाली घराना जाना जाता है। विश्व भर में सूफी संगीत को सिद्ध प्रार्थना के स्वर के रूप में स्थापित करने का श्रेय पद्मश्री पूरनचंद्र और उनके घराने को ही है। “गमक” में पद्मश्री पूरनचंद्र बडाली एवं लखविंदर बडाली ने अपनी रूहानी गायकी से रसिकों को इसका एहसास करा दिया। उस्ताद पूरनचंद वडाली की गायकी की एक खास बात ये है कि उसमें कोई सिलसिला का योजना नहीं है। वे कहीं से भी कुछ भी गाते हैं और जो गाते हैं वो लाजवाब ही होता है, उसमें आपको संगीत के सभी तत्व मिलेंगे। अपने सूफी गायन में वे कहीं से भी आलाप उठा लेते हैं तो तान का अंग भी वे खूब लेते हैं , गमक और मींड का कमाल भी आपको उनकी गायकी में सुनने को मिलेगी। वडाली परिवार के पिता-पुत्र की जो सलाम, नमस्ते, आदाब के बाद अपने चिर-परिचित अंदाज में श्रोताओं का स्वागत कर सबसे पहले एक शेर सुनाया। इसके के बाद एक से बढ़कर एक सूफियाना प्रस्तुतियों से सभी को प्रसन्न कर दिया। पद्मश्री पूरनचंद्र बडाली एवं लखविंदर बडाली द्वारा गाए गए एक से बढ़कर मीठे-मीठे कलामों की साक्षी बनी इस सुरमयी शाम को रसिक शायद ही कभी भुला पायेंगे। आरंभ में प्रमुख सचिव संस्कृति श्री शिवशेखर शुक्ला व संभाग आयुक्त श्री आशीष सक्सेना सहित अन्य अतिथियों ने पद्मश्री पूरन चंद वडाली व लखविंदर वडाली सहित सभी संगत कलाकारों का स्वागत किया। इस अवसर पर उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक श्रीजयंत माधव भिसे व उपनिदेशक श्री राहुल रस्तोगी, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री आशीष तिवारी, अतिरिक्त प पुलिस अधीक्षक सुश्री हितिका वासल, नगर निगम अपर आयुक्त श्री अचेन्द्र सिंह गुर्जर सहित अन्य अधिकारी और आयोजन समिति के सदस्य गणों सहित बड़ी संख्या में संगीत रसिक मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन श्री अशोक आनंद ने किया। पद्मश्री पूरनचंद्र बडाली एवं लखविंदर बडाली के गायन में उनके साथ तबले पर रौशनलाल, ढोलक पर राकेश कुमार, की बोर्ड पर मुनीश कुमार, ऑक्टोपैड पर राजिंदर सिंह एवं गिटार पर दानिश कुमार ने साथ दिया। कौरस में सुभाष सिंह ,अजय कुमार,गगनदीप सिंह, मौसम अली एवं जयकरण ने साथ दिया। जब बिना साउंड सिस्टम के दो घण्टे किया गायन पद्मश्री पूरन चंद वडाली ने एक रोचक वाकया सुनाया। उन्होंने बताया कि वो एक बार आगरा के फतेहपुर सीकरी में तानसेन की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने गए थे। वहाँ किसी ने बताया कि सुर सम्राट तानसेन, बादशाह अकबर के लिए बिना किसी प्रकाश और साउंड के गायन करते थे। हमनें भी लगभग दो घंटे बिना किसी साउंड के उसी स्थान पर बैठकर सूफियाना गायन पेश किया |
देश और दुनिया में सुविख्यात पंजाबी सूफियाना गायकी के सरताज पद्मश्री पूरनचंद्र बडाली एवं उनके सुयोग्य पुत्र उस्ताद लखविंदर बडाली ने अपनी जादुई आवाज़ में
रविवार, दिसंबर 26, 2021
0
Tags
Please do not enter any spam link in the comment box.