नौकरशाह....वो अपने को 'शाह' मानते है क्योकि हम अपनी 'नौकर' वाली सोच पर ही अटके है !
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नौकरशाह....वो अपने को 'शाह' मानते है क्योकि हम अपनी 'नौकर' वाली सोच पर ही अटके है !


नौकरशाह....वो अपने को 'शाह' मानते है क्योकि  हम अपनी 'नौकर' वाली सोच पर ही अटके है ! 

बैतूल। ब्यूरोक्रेसी को लेकर एक अदभुत ज्ञान और अनुभव अभी हाल के दिनों में मिला । एक वकील मित्र है उन्होने बताया कि उनके किसी परिचित पुलिसअधिकारी ने बताया था कि अमुक व्यक्ति उक्त अधिकारी के किसी कनिष्ठ को मीटिंग करवाने के लिए बार बार कहता है। यह बात उस अधिकारी ने किस परिपेक्ष में कही यह तो स्पष्ट नही किया पर इससे उसकी सोच का दायरा जरूर सामने आया। जबकि उस अमुक व्यक्ति को उस अफसर से न कुछ लेना है और न देना, न ही दलाली करनी और न मुखबिरी करनी । फिर भी अज्ञात कारण से यह प्रतिक्रिया दी।  यह अपने ही जिले की सत्य घटना पर आधारित कहानी है। वही इस कहानी से मुझे अन्यत्र जिले के अपने एक प्रिय व्यक्ति की बताई सत्य घटना याद आ गई जो मैंने  वकील मित्र को सुनाई। वह मामला यह था कि उक्त जिले में एक आईएएस जिला पंचायत सीईओ था तब उसकी वहां के कलेक्टर और एडीएम से पटरी नही बैठती थी। कलेक्टर और एडीएम मिलकर उसे डंडा करते रहते थे। वह हैरान परेशान था। उसकी वहां के प्रभावशाली व्यक्ति से जान पहचान हुई तो उससे मदद मांगी। उस प्रभावशाली व्यक्ति ने कलेक्टर और एडीएम को इतना विवादित करा दिया की उनकी विदाई हो गई। कुछ समय बाद वह सीईओ भी एक अन्य जिले में कलेक्टर बना। इस दौरान प्रभावशाली व्यक्ति और उस अफसर का व्यवहार बना रहा। उस प्रभावशाली व्यक्ति का उस जिले में जाना हुआ। उनके किसी परिचित का उस कलेक्टर से कोई काम था। उस परिचित के निवेदन पर उन्होंने उस कलेक्टर को फोन किया और मिलने की इच्छा जताई। कलेक्टर ने कहा कि अभी मीटिंग में है एक घंटे बाद कॉल करता हूं फिर मिलते है। एक घण्टे इंतजार के बाद भी कॉल नही आया। उस प्रभावशाली व्यक्ति ने स्वयं काल किया पर अटेंड ही नही किया। दो तीन बार  ट्राई करने पर भी कोई रिस्पांस नही मिला। वे समझ गए। खैर उन्होंने अपने प्रभाव से उस व्यक्ति का काम तो उसी कलेक्टर से करवा लिया पर वे समझ गए कि ये ब्यूरोक्रेसी बला क्या है ? 

इन दोनों सत्य कथा में हर कैरेक्टर का नाम और पहचान आसान है पर लोक लिहाज से वह जाहिर नही की जा रही। 

यह बताने का मकसद सिर्फ इतना है कि ब्यूरोक्रेसी नामक प्राणी को केवल अपना सर्विस प्रोवाइडर ही समझे उसे अपनी चापलूसी की दुकान का ब्रांड एम्बेसेडर न बनाए और अफसरो के लिए अपने लोकल सम्बन्ध बिल्कुल दांव पर न लगाए क्योकि चार कांधे लोकल से ही मिलेंगे।  यदि दलाली और मुखबिरी जैसा पेशेवर  काम करते हो तो बात अलग है।




    

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