विरोध का कारण खर्च बढ़ने के साथ लोगों को जानकारी में भी लाना है कि पीछे से एंबुलैंस आने पर वे कैसे पहचाने। इसके अलावा सायरन की आवाज लगभग एक ही तरह की होने से लोगों को यह पता चल जाता है कि पीछे से एंबुलैंस आ रही है। तबला, हार्मोनियम, बांसुरी या बगुले की आवाज तो लोगों का मनोरंजन करेगी जिससे उन्हें काफी समय लग सकता है इसे रास्ता देने में।
बगुले की आवाज तो अधिकांश लोगों ने सुनी भी नहीं है जिससे इसे दिमाग में उतारना, कि पीछे से एंबुलैंस आ रही है, काफी समय लग जाएगा। देशभर की हर एंबुलैंस से पुराने सायरन हटाकर नए सायरन लगाना भी खर्च का ही काम है। इसके अलावा प्रचार करना कि अब एंबुलैंस पर तबला, हार्मोनियम, बांसुरी या बगुले की आवाज वाले सायरन हैं जिससे आप इसे सुनते ही रास्ता दें, यह भी खर्च को बढ़ोतरी देगा।
कोरोनाकाल में जब देश की आर्थिक स्थिति खराब हो तब केंद्र सरकार द्वारा इस तरह के बेतुके फैसले लेना हास्यास्पद भी है। इंदौर के ख्यात तबला वादक जितेंद्र व्यास ने कहा कि तबले या अन्य वाद्य यंत्र को सुनने के लिए मन शांत होना चाहिए और उपयुक्त जगह भी होना चाहिए।
एंबुलैंस पर इन वाद्य यंत्रों का उपयोग करना तो मरीज की जान से खेलने जैसा हो जाएगा। लोग समझ ही नहीं पाएंगे कि पीछे से एंबुलैंस आ रही है, जिससे वे रास्ता ही नहीं देंगे। सरकार को इस तरह के फैसले नहीं लेना चाहिए जो किसी की जान के लिए घातक हो जाए। जब तक लोग समझेंगे तब तक कितने मरीज लोगों के रास्ता न देने के कारण मौत का शिकार होंगे यह सरकार को समझना चाहिए

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