नई दिल्ली । कांग्रेस से युवा नेताओं का पलायन जारी है। तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी युवा नेताओं में भरोसा पैदा करने में विफल रही है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम की सदस्य रही सुष्मिता देव ने कांग्रेस को अलविदा कहकर तृणमूल का दामन थाम लिया। सुष्मिता के पार्टी छोड़ने के बाद यह सवाल लाजिमी है कि क्या युवा नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग हो गया है? इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद पार्टी छोड़ चुके हैं। टीम राहुल के सदस्य मिलिंद देवड़ा की नाराजगी भी जगजाहिर है। पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में गुटबाजी हावी है। पार्टी का असंतुष्ट खेमा भी पार्टी नेतृत्व की उलझने बढाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है। एक के बाद एक लगातार हार से पार्टी नेताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। रोहतक की महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा इसके लिए पार्टी की कमजोर लीडरशिप को जिम्मेदार ठहराते हैं। वह कहते हैं कि जब पार्टी लीडरशिप मजबूत थी, तो उसने ही विभिन्न राज्यों में गुटबाजी को बढावा दिया। उनके मुताबिक, इस वक्त कांग्रेस कमजोर है, तो वह स्थिति को संभाल नहीं पा रही है। इसके साथ पार्टी के युवा नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित है। उनके पास अभी तीस साल का राजनीतिक जीवन है और कांग्रेस में उन्हें अपना भविष्य नहीं दिख रहा है। कांग्रेस नेता मानते हैं कि सुष्मिता के पार्टी छोड़ने से गलत संदेश गया है। राहुल गांधी भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब वह अपनी टीम को नहीं संभाल पाए, तो क्या विपक्ष को एकजुट रख पाएगें? पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि सुष्मिता देव ने यह फैसला क्यों किया, इसका जवाब को वह बेहतर दे सकती है। पर पार्टी युवा नेतृत्व को लेकर गंभीर है। वह युवाओं को पार्टी से जोडने की कोशिश जारी रखेगी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में ज्यादा युवाओं को मौका दिया जाएगा।