अगले साल टोक्यो में होने वाले ओलिंपिक खेलों में 20 साल बाद कोई भारतीय घुड़सवार मैदान में नजर आयेगा। इसमें भारत का प्रतिनिधित्तव फवाद मिर्जा करेंगे। फवाद एशियाई खेलों में विजेता रहे हैं और अब ओलंपिक की तैयारियों में लगे हैं। फवाद के पिता भी एक घुड़सवार रहे हैं। फवाद अपने परिवार की सातवीं पीढ़ी हैं जो इस खेल को खेलने की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वह पांच साल की उम्र से ही घुड़सवारी कर रहे हैं। पहले वह इसे केवल खेल के तौर पर देखते थे पर धीरे-धीरे घुड़सवारी उनका जुनून और फिर करियर में बदल गई।
कुछ साल ऐसा समय आया जब फवाद को घुड़सवारी और पढ़ाई में किसी एक चीज को चुनने पड़ा। यह तय करना पड़ा कि क्या वह पेशेवर रूप से घुड़सवारी करना चाहते या फिर पढ़ाई। फवाद ने पढ़ाई करने का विकल्प चुना और मनोविज्ञान और व्यवसाय में डिग्री प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गए। छुट्टियों के दौरान जब घर वापस आने पर उन्होंने घुड़सवारी की, तो उन्होंने महसूस किया कि वह घुड़सवारी को कितना मिस किया था। उनका जुनून इतना मजबूत था कि वह जब भी भारत में होते तो बिना किसी प्रशिक्षण के राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेते थे और वे उन घोड़ों के साथ दौड़ में जाते थे, जो उन्होंने पहले से प्रशिक्षित किया था लेकिन उन्होंने फवाद का पूरा साथ दिया। उन्हें प्रायोजक मिलने लगे, जिसने अंततः उन्हें 2014 एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने में मदद की.
फवाद ने जर्मन ओलिंपियन बेटिना हाय से प्रशिक्षण लिया। साल 2017 में इटली के मोंटेलब्रेटी में एशियाई खेल सीसीआई घुड़सवारी प्रतियोगिता के पहले दो ट्रायल्स में जीत दर्ज करके भारतीय टीम में जगह बनायी थी। इटली में जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने फ्रांस और जर्मनी में भी जीत हासिल की थी।
उन्हें पहली बड़ी सफलता मिली साल 2018 में एशियन गेम्स में मिली। फवाद ने रजत पदक जीतकर एशियाई खेलों की घुड़सवारी प्रतियोगिता में 36 वर्षों से व्यक्तिगत पदक पाने वाला पहला भारतीय बनने का गौरव हासिल किया जबकि उनके प्रयासों से टीम भी दूसरा स्थान हासिल करने में सफल रही। इसके बाद उनका अगला लक्ष्य था ओलिंपिक टिकट जो उन्होंने हासिल कर लिया है। अब उनकी नजर 2021 टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने पर लगीं हैं। कोरोना महामारी के कारण खेल स्थगित होने से उन्हें अभ्यास के लिए भी और समय मिल गया है जिससे वह उत्साहित हैं।
कुछ साल ऐसा समय आया जब फवाद को घुड़सवारी और पढ़ाई में किसी एक चीज को चुनने पड़ा। यह तय करना पड़ा कि क्या वह पेशेवर रूप से घुड़सवारी करना चाहते या फिर पढ़ाई। फवाद ने पढ़ाई करने का विकल्प चुना और मनोविज्ञान और व्यवसाय में डिग्री प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गए। छुट्टियों के दौरान जब घर वापस आने पर उन्होंने घुड़सवारी की, तो उन्होंने महसूस किया कि वह घुड़सवारी को कितना मिस किया था। उनका जुनून इतना मजबूत था कि वह जब भी भारत में होते तो बिना किसी प्रशिक्षण के राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेते थे और वे उन घोड़ों के साथ दौड़ में जाते थे, जो उन्होंने पहले से प्रशिक्षित किया था लेकिन उन्होंने फवाद का पूरा साथ दिया। उन्हें प्रायोजक मिलने लगे, जिसने अंततः उन्हें 2014 एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने में मदद की.
फवाद ने जर्मन ओलिंपियन बेटिना हाय से प्रशिक्षण लिया। साल 2017 में इटली के मोंटेलब्रेटी में एशियाई खेल सीसीआई घुड़सवारी प्रतियोगिता के पहले दो ट्रायल्स में जीत दर्ज करके भारतीय टीम में जगह बनायी थी। इटली में जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने फ्रांस और जर्मनी में भी जीत हासिल की थी।
उन्हें पहली बड़ी सफलता मिली साल 2018 में एशियन गेम्स में मिली। फवाद ने रजत पदक जीतकर एशियाई खेलों की घुड़सवारी प्रतियोगिता में 36 वर्षों से व्यक्तिगत पदक पाने वाला पहला भारतीय बनने का गौरव हासिल किया जबकि उनके प्रयासों से टीम भी दूसरा स्थान हासिल करने में सफल रही। इसके बाद उनका अगला लक्ष्य था ओलिंपिक टिकट जो उन्होंने हासिल कर लिया है। अब उनकी नजर 2021 टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने पर लगीं हैं। कोरोना महामारी के कारण खेल स्थगित होने से उन्हें अभ्यास के लिए भी और समय मिल गया है जिससे वह उत्साहित हैं।
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