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प्रदेश में मॉनसून की एंट्री हो चुकी है। इस बार 100% से अधिक बारिश की उम्मीद हैै। जल्द ही यमुना का जलस्तर बढ़ने वाला है। पर नदी के तट जर्जर हैं। इस बार तटबंधों को मजबूत करने का काम ठेकेदार की लापरवाही और अफसरों की अनदेखी के कारण 70% तक अधूरा है। यमुना से लगते 4 जिलों यमुनानगर, करनाल, पानीपत और सोनीपत के 179 किमी क्षेत्र में टेंडर के बावजूद काम अधूरा है। जबकि 30 जून तक काम पूरा करना था।
सोनीपत को छोड़कर कहीं भी काम आधा भी नहीं हुआ है। ऐसे में यमुना के किनारे स्थित करीब 150 गांवों के लोगों को बाढ़ का डर सताने लगा है। चारों जिलों में यमुना के किनारे पत्थर लगाने का टेंडर तो इस बार भी समय पर हुआ, लेकिन ठेकेदारों ने कम रेट पर टेंडर लगा दिया और बाद में उस रेट पर उन्हें पत्थर नहीं मिला।
इसके चलते पत्थर लगाने का काम पूरा नहीं हो पाया है। तटबंध कच्चे हैं। इस वजह से इन 150 गांवों की 7 हजार से ज्यादा एकड़ फसल पर भी बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।
इन 3 वजहों से नहीं लग पाए पत्थर और संकट में पड़ सकते हैं गांव
कम रेट में टेंडर: कंपटीशन के चलते कई ठेकेदारों ने कम रेट में टेंडर लिया। लॉकडाउन में माइनिंग बंद हो गई। इसके बाद पत्थर उन्हें उस रेट में पत्थर नहीं मिला।
लॉकडाउन: ठेकदारों का तर्क है कि मार्च में टेंडर हुए। फिर लॉकडाउन लग गया। पत्थर लेने नहीं जा सके। अब पत्थर लाए हैं। जबकि सोनीपत जिले में समय से पत्थर मंगा लिया गया था।
अनदेखी: कई अधिकारियों ने टेंडर के बाद मौके पर देखा नहीं कि पत्थर लगे या नहीं। अगर वे समय से स्थिति समझ पाते तो ठेकेदारों के साथ बैठकर समाधान निकाल लेते।
पिछले साल जितना पानी आया तो भी भारी नुकसान
2019 में यमुना नदी में रिकाॅर्ड आठ लाख क्यूसिक से अधिक पानी आया था। यदि इस बार सात लाख क्यूसिक से अधिक पानी आया तो पहले से क्षतिग्रस्त यमुना के किनारों में कटाव से अधिक नुकसान हो सकता है।
यमुनानगर | पत्थर यमुनानगर की खदानों से खरीदा जाना था। लेकिन लॉकडाउन में खनन बंद हो गया, स्टॉक में बचे पत्थरों के रेट बढ़ गए तो अधिकतर ठेकेदारों ने पत्थर खरीदा ही नहीं।
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